काशी काबा के दर पे झगरते रहे /
घृणा से हम दमन को भरते रहे /
क्या टुटा, क्या छूटा, न सोचा कभी ,
ताल,सुर के बिना हम थिरकते रहे /
आस ले,फासले कुछ काम तो हुए ,
एक दिशा में पगों का गमन तो हुआ /
साथ चलते रहे बात बन जाएगी ,
दो रूठे दिलों का मिलन तो हुआ/
आंधियों का सहर दीप जलते रहे -
लहरों का उठाना मुनासिब तो है ,
बह के लहरों संग जाना सहादत नहीं /
चुन लो मोती अमन के,पा गहराइयाँ ,
डूब जांए कही तो शिकायत नहीं /
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