बालू की भीत , फ़ना हुई /
आंधी आयी उड़ा गयी ,
दर्पण से धूल जमा हुई /
अंधकार था ,क्या दिखता ,
देखा तब, जब शमा, जली /
बिरान क्षितिज ,गुलशन उजड़ा ,
रुत पतझर की जंवा हुयी /
गए स्वप्न निद्रा जब टूटी ,
सोये थे हम खता हुई /
झूठी प्रीत , बैर की मारी ,
ना जोड़ी , ना जुदा हुई /
उदय वीर सिंह .
२९/१०/२०१०
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