रविवार, 24 अक्तूबर 2010

पेटेन्ट

देश के विकास  का  आधार भले टूट गया   ,
देशी भ्रस्टाचार  का    पेटेन्ट   हो   गया  /
भारतीय संस्कृति की शान थी ना मांगना  ,
अब मांगने  को हाँथ परमानेंट   हो गया  /
               रूठता एक भाई तो मनाता एक भाई ,
               हृदय में था प्यार, संस्कार अनमोल था  /
               आयी जब आपदा, तो डिगे नहीं पैर कभी ,
               भले कट जाये शीश ,विचार अनमोल था  /
देश की विरासत को ,राजनीत ने डकार लिया ,
विदेशी मान्यताओं  का एजेंट  हो गया   /--------
               खाद्य,  पेय ,पेस्ट ,कार,कपड़े विदेश के ,
              शिक्षा अंग्रेजी में हो उतनी ही शान है  /
               ढूंढ़ता है भारत अब अपने स्वरूप को  ,
               विदेशी चैनलों में खोई अपनी पहचान है  /
पड़ी खतरे में प्यारे देश की है अस्मिता ,
सी .टी .बी. टी ,डंकल का ये टेंट हो गया  /---
               करते उद्दघाटन नित ,कालेज ,अस्पताल का  ,
               शिक्षा व चिकित्सा ,हेतु जाते हैं   विदेश में   /
               शिक्षण व प्रशिक्षण में अरबों  निशार हुए   ,
               खाली हाँथ लौटते ओलम्पिक जैसी गेम में  /
स्वार्थी ,अहंकारियों के स्वार्थ में विकास जला ,
असत्य  व अन्याय  का   मर्चेंट    हो    गया  /------
              दर्शन ,विज्ञानं, खेल ,साहित्य ,सम्मान में ,
              होता   भेद -भाव    परिणाम  शर्मनाक  है  /
              शिक्षा ,अर्थ,स्वास्थ्य ,व सुरक्षा के ही क्षेत्र में ,
              कितने   हैं   निर्भर   दृश्य     दर्दनाक    है  /
देश -हित न्याय और निर्णय  का विचार कहीं खो गया ,
दलालों     को     दलाली      का    पेमेंट    हो गया  /--------

                                      उदय वीर सिंह   .


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