शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

पायल

विकसित    क़दमों    के   पायल ,
टूट     जाते    हैं      बिन   प्रयास  ,
आवेग  ,उन्माद  ,में    आबद्ध       होकर   .
स्वक्षछ्न्द्ता  ही   स्वीकार्य होती है    /
बंधन   तो टूटना   ही  था ,टूटना   ही   था   वर्जनाओं  को  ,
क्यों की    हमने बांध  रखी   थी आदर्शों में  ,
शालीनता   ,अनुशासन     ,प्रतिमानों   में ,
कोई  आ  रहा  है शोर   नहीं      सूचना     थी ,
भार्या  है ,तो मधुर     तान      ,दबे  पांव      ,
आर्या  है तो सावधान   !
आई  सखी  तो ,छम  -छम    ,जैसे  बजती  सरगम    /
शैशव - काल   की पायल ,प्रीत  पगारें  परिजन    /
एक    कान्हा ,     की पायल थी /
सुनने  को आतुर   धरा -गगन    /
मीरा , तुलसी,  सुर  ,संत  ,थे   पायल के कायल    ,
मस्त  रहा , करते  थे  हर  -   पल ,
वह  ध्वनि  नहीं,  धारा  थी ,अमृत  की ,
पीकर   /
एक  पायल    पारो   की ,उमराव   की ,नगर -वधु  वैशाली  की ,
विकसित  हो  कर  नुपुर  बनी   /
 जो   रंगोत्सव  ,  कोठों  पर  पाई  जाती   है /
स्वागतम  करे    प्रथा   की लाचारी  है   
पायल का  सिकुड़ना   जारी है  ,
अब  निशब्द  होती है ,रेखा  मानिंद  ,
बस  टूटने  के लिए वासनाओं  में ,अभिजात्य  उत्सवों   में /
टूट जाना  विजयोत्सव  है !  ध्वंस-  कर्ता विजेता  ! 
नहीं  !बंधन -हीन   पायल नहीं    होती  /
आदर्श    होते   हैं /
पग  चाँद  पर  जाये   पायल रोकती  कैसे  ?
परिस्कृत  कर   विचारों  को आदर्श  बनते  है  /
स्तरहीनता   विकलांगता      होती  है /
आभूषण  बंधन कब  होगा  ?बंधन तो पथ्यर  भी  चाहता  है  ,
वरना   ताजमहल  नहीं   होता   /
विवेक  से  दूर  अतिरंजित   ना   हो    द्रोह  ,
ध्वस्तीकरण  में सेज  ना  जल  जाये ,
पायल बंधन है संस्कारों     का  ,जड़  नहीं    /
ध्वनि  बने  उपासना  की ,चैतन्य  हो  जीवन   
उन्माद पल -   दो  -   पल    का , विवेकहीन     ,
संस्कार    बनना है , उदय  ,अमर -  आदर्शों   के,
हस्ताक्षर  /
अनवरत ! अनवरत !  अनवरत ! 

                                   उदय   वीर  सिंह   .
                                        4/11/2010 
                                            .
 



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