टूट जाते हैं बिन प्रयास ,
आवेग ,उन्माद ,में आबद्ध होकर .
स्वक्षछ्न्द्ता ही स्वीकार्य होती है /
बंधन तो टूटना ही था ,टूटना ही था वर्जनाओं को ,
क्यों की हमने बांध रखी थी आदर्शों में ,
शालीनता ,अनुशासन ,प्रतिमानों में ,
कोई आ रहा है शोर नहीं सूचना थी ,
भार्या है ,तो मधुर तान ,दबे पांव ,
आर्या है तो सावधान !
आई सखी तो ,छम -छम ,जैसे बजती सरगम /
शैशव - काल की पायल ,प्रीत पगारें परिजन /
एक कान्हा , की पायल थी /
सुनने को आतुर धरा -गगन /
मीरा , तुलसी, सुर ,संत ,थे पायल के कायल ,
मस्त रहा , करते थे हर - पल ,
वह ध्वनि नहीं, धारा थी ,अमृत की ,
पीकर /
एक पायल पारो की ,उमराव की ,नगर -वधु वैशाली की ,
विकसित हो कर नुपुर बनी /
जो रंगोत्सव , कोठों पर पाई जाती है /
स्वागतम करे प्रथा की लाचारी है
पायल का सिकुड़ना जारी है ,
अब निशब्द होती है ,रेखा मानिंद ,
बस टूटने के लिए वासनाओं में ,अभिजात्य उत्सवों में /
टूट जाना विजयोत्सव है ! ध्वंस- कर्ता विजेता !
नहीं !बंधन -हीन पायल नहीं होती /
आदर्श होते हैं /
पग चाँद पर जाये पायल रोकती कैसे ?
परिस्कृत कर विचारों को आदर्श बनते है /
स्तरहीनता विकलांगता होती है /
आभूषण बंधन कब होगा ?बंधन तो पथ्यर भी चाहता है ,
वरना ताजमहल नहीं होता /
विवेक से दूर अतिरंजित ना हो द्रोह ,
ध्वस्तीकरण में सेज ना जल जाये ,
पायल बंधन है संस्कारों का ,जड़ नहीं /
ध्वनि बने उपासना की ,चैतन्य हो जीवन
उन्माद पल - दो - पल का , विवेकहीन ,
संस्कार बनना है , उदय ,अमर - आदर्शों के,
हस्ताक्षर /
अनवरत ! अनवरत ! अनवरत !
उदय वीर सिंह .
4/11/2010
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