शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

चला ना गया

कित ठावं  गए ,   कित छावं  गए  ,/
कित पावं गए ,       गहरे -गहरे  /----
कित मोर  गए ,  कित   जोर  गए  ,
कित लोर गए  ,    बहते -बहते  ------
कित प्रीत गयी ,  कित रीत गयी  ,
कित गीत गयी  , झरते -झरते  /------
कित हीर गयी   , कित हार गया ,
पाजेब गयी  ,    बजते - बजते  ----------
कित सुन्दर रूप   , स्वरुप गया   ,
कित  उम्र ढली  ,चलते - चलते -----
कित आस गयी  ,   कित प्यास गयी  ,
कित शाम  गयी ,    ढलते - ढलते      ------
खायी ठोकर    ,   हर- राह   मिले ,
कित राह गयी  ,    गिरते  - गिरते   -------
अब ढूंढ़   रही  ,    सब  दूर   गए  ,
मैं दूर रही  ,    जब      पास    रहे ---------
टूटी जो   डोर  ,बंधी    हिय     से  ,
मजधार चली    ,  बहते -  बहते   --------

                           उदय वीर सिंह .
                         ५/११/२०१० 


2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को |

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com