कभी हँसते हुए, कभी रोते हुए /
बेबस अंखियों का देखा है प्यार ,
दर्द ,सहते हुए फर्ज, ढोते हुए /
आशा से बंधी है , प्रथा से बंधी है ,
नियम से बंधी है , हया से बंधी है ,
जनम से बंधी है , यतन से बंधी है ,
करम से बंधी है , दया से बंधी है /
कितने बंधन बेबसी के हज़ार ----------
उनके पांओं ,में हमने पिरोते हुए ------
नारी-नाम वस्तू , खरीदो या बेचो ,
व्यापारी पुरुष है ,कथा से बंधी है /
दुर्दिन में ,माँता, बहन व सखी है ,
हाय कैसी विवसता ! व्यथा से बंधी है /
पुज्यनिया है , कितनी लाचार -------
क्या बताएगा कोई संजोते हुए ? -----
-फिर भी ----
सह लेंगे बंधन कभी तो मिलेगा ,
मुकद्दर हमारा आशा से बंधी है /
त्याग हमने किये तो सिला भी मिलेगा ,
सितम ही सितम ये नियति तो नहीं है /
आस में बीती सदियाँ हज़ार ,--
कभी जगते हुए,कभी सोते हुए ----
क्या पाएंगे जीवन में प्यार ? --
या बीत जायेगा ऐसे ही रोते हुए /--------
उदय वीर सिंह .
१२/११/२०१० .
[पुरानी कृति ]
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