बुझते यादों के दीपक ,
निशा गहरी ,हर पल निष्फल / ------
दे दो , अतल गहराई , उनको ,
ना लौट सकें अपने गहवर /----------
स्मृति -पटल बिस्म्रित हो जाये ,
खुले क्षितिज के द्वार नवल /
रमणीक पवन वातायन खोले ,
सुखद समीर , करे हलचल /
*** **** ****** *****
अस्ताचल में साँझ समेटे ,
पथिक चला अपने पथ पर /
मुड़ कर देखे ,देख ना पाए ,
दूरी अन्नंत इतना अंतर /
**** *** ***** ******
ऋतू ना बांधी , समय ना बांधा ,
बांधे ममता का सागर ,
ढूंढा पैठ मोती ना पाया ,
सागर समझ , गन्दला सरवर /
भ्रम , सुरम्य, स्थिर कब होता ?
कब छांव दिया सुखा तरुवर ? ------------
विस्वास ना हो ,अहसास ना हो ,
एक पथ से स्मृत बंधी हुई /
अब मुक्त हुई , बादल बन बिखरे ,
रिक्त क्षितिज -मन फ़ना हुई /
मंदिर , बंद - सभा , विसर्जित ,
दर्शन, पूजा की बंद डगर -----------
भूल स्मृतियाँ , प्रकाश विलोको ,
उदय प्रतीक्षित ,नव पथ पर ---------------
उदय वीर सिंह
१४/११/२०१०.
3 टिप्पणियां:
बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
बेहद प्रभावशाली।
बाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें