प्रणाम !
सत-सत , प्रणाम!
निशि- दीन प्रणाम !
मानवता के अग्रदूत !
दिव्य ज्योति ,पावन , स्वरुप !
तेरा उपकार हर रोम -रोम ----------
आहत मानव बिखरा जीवन ,
विशाल - भंवर ,शंशय -पोषित ,
बिन - किश्ती ,छोर नहीं /
जुल्म- जबर की हस्ती थी /
पथ बिन, भटक रहा ,
स्वर- बिन गूंगा , जन-मानस !
अकाल से निकली ज्योति - पुंज ,
निर्वाणक , संबल ,क्रांति - दूत ,
बनकर आये आप /-------
"मिटी धुंध , जग चानन होया "
पाई धरती तुझे, अघाई /
दिया दिव्य- पथ, जीवन को !
अज्ञान ,असत्य , अंध-विस्वास को फूंका !
हूंकार भरा , जन- नायक बन --------------- ,
"कुदरत के सब बन्दे ,कौन भले ? को मंदे ? "
प्रेम , सत्य , शुभ , का संपादन ,
तर्क , न्याय का किया वरण /
कण -कण में , एकेश्वर , पाया /
किया खंड , झूठ और दंभ ,
दिव्य - दृष्टि , दया के सागर ,
सुख ,शांति , सद्ज्ञान समृधि ,
जग पाया, तेरी छांव तले /
करो स्वीकार ! प्रणाम मेरा ,
तेरी ओट ! पुनः वंदन !-------
उदय वीर सिंह
१९/११/२०१०
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