सोमवार, 22 नवंबर 2010

बेटी ही संसार

चल  रहा  निर्देश ,नीति   प्रवचन  ,                  
मा-पिता श्री , के   समक्ष ,
गंभीर ,वातावरण ,घोर  चिंता ,  का    विषय ,  
पुत्र -हीन  होना    /
समाज  का  प्रतिनिधि ,मुखरित --धारा -प्रवाह - --
पुत्र -रत्न  ही   वांछित  !  कुलदीपक  होता  है  /
कन्या  चिराग  नहीं   बनती  /
वांछित  हैं      ---
संस्कार  ,  निर्देश  /
"उरीण " होना  होगा ! " पित्री -ऋण  "से  , नीति  ,समर्थित    है   /
पित्री -   ऋण   को    चुकाना     होगा    /
एक      कुल   पीछे     एक    आगे   को  सवारना  है  तो     
पुत्र  -रत्न   पाना  होगा   /
****        *****       *****     
यक्ष -प्रश्न ,  उद्वेलित  करते  हैं   -----
देगा    कौन ?   अर्थी  को  स्कंध ?
देगा  कौन  मुखाग्नि ?
चिता  परिहास  करेगी   /
* कन्यादान  होता  है     !
बेटा - दान  नहीं  होता    /
पुत्र   ,सर्वस्वा  सदैव  संग  होता  है    ,
पिंड  -दान   करनेवाला    /
* कन्या  होती   है  , परायी   ----
दौलत  ,प्रतिष्ठा  ,सम्मान  ,खोने  का सबब ,     
  पगड़ी  पराये  पैरों  में , रखने  का   कारण   /
*धवल     चादर  होती   है  ,
लगी  नहीं  दिखती  है  पहले    ,
जाने  कब  लग  जाये  दाग    ?
यहीं  अंत  होता  है   कुल  का  !
* चलता  रहा    प्रयास  कुल - दीपक  को   पाने  का    /
माँ  की  गोंद भरी     /
एक  नहीं  ,कई  बार  , बेटी  आई  कोख ! 
हर  बार ,  दी  गयी  मार   !
जन्म लेने  से  पहले  ,कभी  जन्म  लेने  के   बाद /
छीन  लिया  मेरा    बचपन  ,यौवन   दर्शन ,
जिसकी  में  नहीं  हक़दार      /
में  रोती रही !   कहती   रही  -----------
आम्मां मैनू  बांचो  !  किताबों  से   ज्यादा  ,
दिल  की  गहराईयों  में  उतरकर,
उतरन   नहीं ,  तेरे  कर   की   हूँ  कंगन  ,
कागज  की  नैया  ना  , गुड़िया हूँ  तेरी  /
तोड़  फेंकों  नहीं   ,खिलौने  सृजन  के  /--------
तोड़  देंगे   हृदय  ,  छोड़  जायेंगे  सब   /
साथ  होगी  तड़फ   ,याद   आयेंगे   हम  /
करती   पूजा  ,दुर्गा , सरस्वती,   देवियों   की   !
पुत्र  मांगती   है , एक   औरत  से  औरत  !  
क्या  उलझन  है  मन की , सुलझाओ  माये    ?
देख  बेटियां  खड़ी हैं   पर्वत  -शिखर  पर  /
किरण  ,कल्पना  ,प्रतिभा , उषा , दिया  है   ,
झूठी  ,प्रतिष्ठा   में  क्यों  जल  रही  है   ?
*नानी   ने  दिया   था  दुलारों  का  थप्पड़     ,
तुने  तो  मारा  अपनी   बेटी   को  खंजर    ! 
पूछ  लेना   ,जरा  मेरी  दादी  से  एक दिन  ,
बाबुल,  डोली  सजाया  ,या  अर्थी  उठी  थी   ?
उत्तर  मिले  तो  हमें  भी  बताना  ------
लाज   आये  जरा  भी  तो  ,
बेटी    बचाना    !-------

                           उदय  वीर  सिंह   .
                               २१ /११ /२०१०


      

7 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी और विचारणीय प्रस्तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना का लिंक मंगलवार 23 -11-2010
को दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


http://charchamanch.blogspot.com/

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत ही सुंदर.... मनोभावों को खूब प्रस्तुत किया.... बधाई
कुछ पंक्तियाँ आँखें नम कर गयीं ......

अनुपमा पाठक ने कहा…

मार्मिक शब्द चित्रण!!!
विचारपूर्ण!

सदा ने कहा…

बहुत ही भावमय करती शब्‍द रचना ।

रेखा ने कहा…

मार्मिक और हृदयस्पर्शी ...

रेखा ने कहा…

मार्मिक और हृदयस्पर्शी ...