जीवन को गौरव ,नहीं दे सकोगे /-----------
तरस खाकर तुमको ,कोई देख लेगा ,
अंखियों के तारे नहीं बन सकोगे /---------
बनो संत ,सज्जन बनो तुम सिपाही ,
गुरुओं की शिक्षा पर करके भरोषा ,/
ना कोई ठगेगा ,दोनों जहाँ में ,
बनोगे विजेता, ना खाओगे धोखा /
मांगोगे कब तक ?अपनी इज्जत का पर्दा ?
खुला- अद्खुला तन नहीं ढक सकोगे / -----
बारूदी- शक्ति से बाबर, हिंद रौंदा ,
अंग्रेजों ने लूटा, तकनीकी, ज्ञान लेकर /
मेरे दादा को हाथी था रटते रहे ,
ख़रीदे खिलौना , हम सोना को देकर /
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नीम ,हल्दी हरे -वन व् हर्बल , हमारे ,
पेटेन्ट , इनका कराता है कोई ,/
वासमती , अंजी ,उगाता दोआबा ,
डंकल , का डंडा दिखाता है, कोई /
घृणा ना गयी, प्यार आया नहीं ,
उजड़ोगे फिर तो नहीं बस सकोगे ---------
चट्टान जैसा एक भारत बनाओ ,
जाति ,धर्म का चलाओ ना खंजर /
सबल राष्ट्र , हो आत्मनिर्भर, धरा पर ,
विषमता हटाओ , प्रगति की डगर पर /
समय मांगता है ,संभलना , तुम्हारा !
वर्ना---
टूटोगे इतना ! फिर जुड़ ना सकोगे /-------
उदय वीर सिंह .
१२/११/२०१०
4 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी रचना ..सच्चा सन्देश देती हुई .
सीधी सादी रचना अच्छी लगी
सराहनीय रचना है .
बिलकुल सही लिखा साहब आपने, वैसे भी एक कहावत है "मरे सो मांगन जाये " सराहनीये प्रस्तुति sparkindians.blogspot.com
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