रात तेरी, सुबह , कल तुम्हारा ना हो -------
चांदनी है खिली नील अम्बर सजा ,
कर ले रोशन हृदय ,कल उजारा ना हो -------
प्रणय गीत गाया ,हर गम भूलकर ,
लगे उत्सव हमारा ,हमारा ना हो ----------
पथ में आना, ना आना ,तेरी मर्जी उदय ,
चल पड़े तो चलो ,कल सहारा ना हो-------
जश्न , महफ़िल , बनीं तेरी उचाईयां ,
जाये किस्ती किधर, जब किनारा ना हो -------
होश ,मदहोश करने को जाम आ गए ,
जब तक उतरे नशा ,घर तुम्हारा ना हो ---------
राग ,यौवन, दमक, रूप, मदहोशियाँ ,
जब जाये उतर ,बे -सहारा ना हो ------------
प्रीत बदलो ना अपनी, वसन कि तरह ,
आज सूरज तेरा कल ,सितारा ना हो ----------
उदय वीर सिंह .
६/११/ २०१० .
1 टिप्पणी:
'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।
दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर
ग्राम-चौपाल में आपका स्वागत है
http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_06.html
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