बुधवार, 1 दिसंबर 2010

** महक **

महक  !
प्रतीक्षित ,   तेरा  आगमन ,स्वागतम ,
की थी तलाश सबमें शरीर , सूरा ,इत्र, पंक, कुसुम -वादियों में ,
अपनी मिटटी , अपनी स्मृतियों  में  /
पाई तो गयी ,बांध ना सका ,हमेशा के लिए ,
चलायमान जो ठहरी   /
तेरी आहट समस्त सांसों को  शंशय- मुक्त  करती   है -----
 उदघोष करता है वातावरण--  तेरा सुखद अस्तित्व ,  तुम  हो  /
बह चली, किस गली ? ,किस पथ ? किसे मालूम  ,
बस तुम आ गयी ,समां गयी , मन में , तन में , बहती  पवन ,
आँगन ,  उपवन में /
उल्लसित ह्रदय , विरक्त  हो त्रास  से , बोल  उठता   है ,
तू,  यथार्थ  है संवेदना  का ,  वांछित    है  नित्य , प्रिय   भी     /
स्वागतम    तेरा /
प्रकृति  के  सुंदर  रूप ,
बे-जुबान  ,सींचते  प्रेम  की  भाषा ,
लहराते सौन्दर्य रंग -बिरंगे,  अप्रतिम  दृश्यों  को सजाते    ,प्रसूनों    की -
अद्वितीय    प्रतिनिधि     !
समर्थक   तेरे   मनुष्य   ही     नहीं , इतर -  मनुष्य   भी   हैं   ,
समायी    चहूं    ओर     कितनी    विचित्र   ,
आती    ना हाँथ ,  होकर    कितनी    पास ,  पकड़    से दूर        /
अंतर्मन    की गहराईयों    में तेरी पहुँच   ,
हस्ताक्षर    हो --
वफ़ा    का -बेवफा   का ,
पढ़े     गये    निवेदन   - प्रतिवेदन    ,तेरे   सानिध्य    में  ,---
संकेतक    हो !साक्ष्य  हो / ---
स्पस्ट     उकेर   देती    हो स्मृतियाँ  ,स्मृति    पटल  पर       /
कैसी     थी     रुत  ?     मिलन    की   ,बिछुड़न   की  ,प्यार    की  ----
कैसी    थी शाम    ?   रौनक   - ए    -महफ़िल   ?
अहसास    को ,  पास      रखने    की हिमाकत    !
सजाते    गुलशन    ,गुलदस्ते   ,
अर्क   ,बोतल  -बंद    किये    जाते   /
जब    तक   हो !
आनंद  है , उन्माद  है , अनुभूति   है /
मुरझा   जाते   है  पुष्प   ,सड़ांध    आती    है  /
मरहूम   तुमसे   ,खाली   शीशियाँ   ,
फेंक    दिए   जाते   हैं    कूड़ेदान   में  /
तेरे   जाने   के बाद   /    
महक !    

                                      उदय   वीर   सिंह  
                                     01/12/2010
                       

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