रोशनी के दिए तू जलाता रहे /
डूब जाये जो सूरज ,अम्बर में कभी ,
जुगुनुओं की तरह , जग-मगाता रहे----- -- -----
हर तरफ है अँधेरा किधर जाओगे ,
मिला है विरासत में हम वारिसों को /
उगाना पड़ेगा एक सूरज मुक़द्दस ,
रोशनी की जरुरत है हम वारिसों को /
राहे-रहबर भले अपना साया बने ,
शहर -ए गम में भी तू मुस्कराता रहे---- -------
जेल ही है जगह जिनकी ,वो संसद में दिखे ,
बेशर्म भाषण ,में अमृत झरे है /
वे बदलते हैं परिभाषा अपनी तरह ,
केवल महफूज रहने का उपक्रम करे है /
गन्दा इतिहास करने की आज्ञा किसे है ?
करके पहचान उनकी मिटता रहे -------
ना धन का, ना बल का, अभिमान हो ,
हम भारत सदा , हम इन्सान हैं /
मोह -ममता तजें ,देश - हित हम जिंयें
वतन के हिफाज़त की पहचान हैं /
शौक-ए-सहादत ले चल पड़ा ,
रोड़ा आये कोई तो हटाता रहे ,---------
भय -भूख भ्रस्टाचार ना भारत के गहने
खुशहाल ,सुंदर, समरस हो भारत /
गरीबी अशिक्षा अज्ञानता से हो बंचित ,
" हम भारतवासी" का नारा हो भारत /
दूरियां है मिटानी , दिल जोड़ना है ,
प्रेम बनकर दिलों में तू गता रहे ----------
मात्री-भूमि से नाता कैसा गद्दार का ,
स्वार्थ , सत्ता ही प्यारी थी हर दौर में /
आक्रान्ताओं , लुटेरों के वाहक रहे ,
ध्वज -वाहक बने कैसे इस दौर में /
जल चुकी है सदियों तक मेरी -मातृभूमि ,
अब ना जले याद आता रहे ------
जख्म जिसने दिए ,वे दुलारे ना होंगे,
दे रहे जख्म अब भी, मिटाना ही होगा /
नीति, न्याय, शासन, पारदर्शी, बनें ,
द्रोही , बेईमानों को जाना ही होगा /
सुन भारत ,भरत, की आवाज क्या है ?
ज्ञान , वैभव , शक्ति नित हमारा रहे ------
उदय मेरा भारत ,देवों की धरती ,
क़यामत तक बंदन हमारा रहे --- ------
उदय वीर सिंह
०१/१२/२०१०.
.
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें