शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

तेरा सदका

बहारों के घर की खुली खिड़कियाँ ,
झांकना हो तो झांको मनाही नहीं  /-----
    मेरे आंगन का दर्पण कसे फब्तियां  ,
    प्रीत  हमने किसी से निभाई नहीं   /------
झील सी सौम्य आँखों का हम क्या करें  ,
कोई कश्ती कहीं ,हमने पाई नहीं  /--------
 खंडित  शिलाओं    से    पूछो    बयां,
 टूट कर   कैसे  बनते हैं  रहबर  हमारे  /
सहेज रखना घावों  को, फितरत है उनकी   ,
वो तो देते ,मुक़द्दस  मंजिलो के नज़ारे  /
    रस्ते वादियों से, मिलाते रहे ,
   मुड़ के देखे कोई याद आई नहीं  /-----------
शीतल मलय ,तेरे घर की तरफ  ,
तपन से बचा कर ,संवारा करें  ,
नीले अम्बर तक खुशियों की सरहद तेरी ,
मन्नतें भी ,खड़ी  हो निहारा  करें  /
   दुआ करने वालों तेरे ,सजदे करूँ ,
   वैर  की राह , हमने  बनाई नहीं    /---------
चल सको दो कदम ,साथ आओ चलें  ,
है उजाला उदय ,शाम आई नहीं  /-------

                           उदय वीर सिंह
                          ०३/१२/२०१०


    

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