बहारों के घर की खुली खिड़कियाँ ,
झांकना हो तो झांको मनाही नहीं /-----
मेरे आंगन का दर्पण कसे फब्तियां ,
प्रीत हमने किसी से निभाई नहीं /------
झील सी सौम्य आँखों का हम क्या करें ,
कोई कश्ती कहीं ,हमने पाई नहीं /--------
खंडित शिलाओं से पूछो बयां,
टूट कर कैसे बनते हैं रहबर हमारे /
सहेज रखना घावों को, फितरत है उनकी ,
वो तो देते ,मुक़द्दस मंजिलो के नज़ारे /
रस्ते वादियों से, मिलाते रहे ,
मुड़ के देखे कोई याद आई नहीं /-----------
शीतल मलय ,तेरे घर की तरफ ,
तपन से बचा कर ,संवारा करें ,
नीले अम्बर तक खुशियों की सरहद तेरी ,
मन्नतें भी ,खड़ी हो निहारा करें /
दुआ करने वालों तेरे ,सजदे करूँ ,
वैर की राह , हमने बनाई नहीं /---------
चल सको दो कदम ,साथ आओ चलें ,
है उजाला उदय ,शाम आई नहीं /-------
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें