चुराना चाहा ,
ईमानदारी ,
सवेर हो गयी /
मंदिरों में बजती घंटियाँ ,
मस्जिदों से आती अजान ,
गुरुद्वारों से प्रवाहित शब्द ,
व्यवधान बन रहे थे /
ले चले गये साथ उसे ,
इमानदार !
अर्चना के लिए /----
मै ढीठ, जा पहुंचा ,
तलाश में उनकी / वे आयेगें इसी डगर से /
प्राप्त कर लूँगा ,चाहे जैसे ,
ईमानदारी को /
दिखे, आये ,वे पास ,
माँगा मैंने /--
दे दो मझे ईमानदारी /
दैन्य हूँ , इसके बिना ,/
सब कुछ है मेरे पास , सिवा इसके /
मै चाहता हूँ इसका सानिध्य ,
तेजस्वी भाल , दहकते नैन , बढ़ा आगे ,
बढाया हाँथ /,
बोला --ले संभाल !
भद्र !
यह , भष्म है ! जलने के बाद मिलती है /
शरीर व् आत्मा शुद्ध हो जाते हैं ,
सदा के लिए /
भार, अग्नि , वेदना , संवेदना , समर्पण है इसमें ,
लेगा संभाल !
ले लिया बुझे मन से , रत हूँ /
सभालने में /
सिक्त है मन , उपाधियों से /
अभिभूत है प्रशंसा से /
कल के साथी , दूर तक नहीं आते नज़र /
कहीं छूत , ना लग जाये /
बस !
अब साथ हैं --कंटक -पथ , अकेली मेरी छाया ,
टीसता दर्द ,
बिना कफ़न , प्रवाहित करना पड़ा ,
अर्धांगिनी को!
भाष्मित नहीं कर सका , अभाव में /
सिवा अफशोश व् सहानुभूतियों के ,
जो मिलीं मुझे /
उदय वीर सिंह
०७/१२/२०१०
bola
1 टिप्पणी:
कहाँ मिलती है इमानदारी ....ढूँढते रह जाओगे ............
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