स्मृतियों में बसे वेदना बन चले -----------
बादलों के नगर , दामिनी से जले ,
खंडित हुए , यातना बन चले -------
दंश हर -पल हृदय , बेधते ही रहे ,
गुल ,गुलाबों के घर , वासना बन चले --------
आगमन में खनक है ,गमन में तड़फ ,
स्वप्न ,संचित रहे चेतना बन चले ----------
पथ निहारें पलक , आगमन हो ना हो ,
वो प्रतिक्षा ही क्या कामना बन चले -------
प्रेम की राग निकलेगी , हर साज से ?
ये जरुरी नहीं , वो गज़ल बन चले -----
जो झुका ही नहीं पा के उंचाईयां ,
उदय तज धरा , आसमां बन चले -----------
उदय वीर सिंह
११/ १२ /२०१०
4 टिप्पणियां:
bahut sundar .........likhte rahiye
बहुत सुन्दर ....
धारा को धरा कर लें
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
प्रेम की राग निकलेगी , हर साज से ?
ये जरुरी नहीं , वो गज़ल बन चले --
सच है ... प्रेम का साज़ तो चिड़ियों की चहक में ... मजदूर की ठक ठक में भी होता है ... लाजवाब ...
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