शाम होने को है ,एक घरौंदा कहीं ,
सफ़र के लिए हम -सफ़र मांगिये ------
सिर्फ देने की आदत बदल डालिए ,
मिल सके जिंदगी ,तो कफ़न मांगिये -------
पैरों में छाले , मुनासिब नहीं ,
चलते रहे राह , मिलते रहे /
छाप छोड़ी पैरों की ,लहू से रंगे ,
मंजिल -ए- मुसाफिर ,सलामत मिले /
मुकम्मल जिंदगी ,तो मयस्सर नहीं ,
कुछ मिली तो ,जीने का हुनर मांगिये -------
सुर्खुरू होके , जीना तो सब चाहते ,
दाग दामन , में लगना गवारा नहीं / ,
दाग , बन बे-नशीबी ,मुकद्दर बने ,
बे- दाग होने का फन मांगिये -----------
जख्म पाए , जिन्हें आप गिन ना सके , .
उनको महफूज रखने को , घर मांगिये ---------
उदय वीर सिंह
१९/१२/२०१० .
3 टिप्पणियां:
बहुत खूब ..अच्छी गज़ल
मुकम्मल जिंदगी ,तो मयस्सर नहीं ,
कुछ मिली तो ,जीने का हुनर मांगिये --
बहुत खूब .. क्या बात कही है .. जीवन मिल गया है तो जीने का हुनर भी आना चाहिए ...
जीने का हुनर मांगिये.......
अच्छा लिखा है, कुछ मांगना ही है तो .....
रब नू गालां दिन्दा खुद नू मंगना आयूँदा नहीं !!
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