शराफत के सलाहकार, कितना पियोगे खुद को ,
रुखसत -ए -मयखाना , मददगार बनना होगा ----
कितनी मुश्किल है , इंसानियत की डगर , उदय
कभी देखना ही पड़ा इनसान ,तो राजदार बनना होगा -----
मुझे मालूम है तेरा जवाब ,झूठ ,फरेब ,कदाचारों का ,
कम से कम क़यामत के दीन ,इमानदार बनना होगा ----------
खाक हो जाएगी तेरी सत्ता,सल्तनत ,दह्सते- यारा ,
उदय ! सरदारी पानी है ,तो असरदार बनना होगा ----------
रंग-महल नहीं होता ,रंगमंच ! पिंजरे के मानिंद ,
दिखाना है हुनर अपना , तो किरदार बनना होगा -------
कितना मरे आदमी , फरियादों की ड्योध्हियों पर ,
जख्में- हालात बदतर हैं , उपचार बनना होगा ------------
उदय वीर सिंह
२६/१२/२०१०
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1 टिप्पणी:
भाई उदय सिंह जी ,गज़ल का हर शेर लाजबाब , मुबारक हो लेकिन कुछ टंकन त्रुटियाँ है जैसे दिन कि जगह दीन, और गज़ल का मकता आख़िर में आना चाहिए , माफ़ कीजिये
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