हमने पाए हैं जीवन धोखे और गम ,
जिसने भी दिया तो" पराया" समझ कर /-------
ना सिकवा किया, ना शिकायत , किसी से ,
ले आंचल में बांधा, " बकाया" समझ कर -----
हर ठोकर को समझा है अपना मुकद्दर ,
हर सितम में है ढूंढा ,ख़ुशी की किरण /
नफ़रत की गली प्यार ही मैंने ढूंढा ,
हमने काँटों में चाहा बाहर -ए- चमन /
चलती रही है पथरीले पथों पर ,
जिंदगी भी मिली तो" किराया" समझ कर -----
भीगते हुए आंशुओं को भी देखा ,
तड़फते रोशनी को , मशाल-ए- शहर में /
दर्द, आँचल से छन कर, गिरा था तिमिर में ,
ढूंढ़ कर के जलाया गया चांदनी में /
ना आकार था ,ना कोई आक्रति ही ,
जीवन को जिया , धूप - छाया समझ कर /-----
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
1 टिप्पणी:
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@-दर्द, आँचल से छन कर, गिरा था तिमिर में ,
ढूंढ़ कर के जलाया गया चांदनी में ...
हर पंक्ति में दर्द भरा है । लेकिन शिकायत न करने का खूबसूरत सन्देश भी । --आभार ।
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