उन्माद की राहों में ,पनाहों में ,
बसर नहीं होता --------------
गुमनाम - सी गलीयों में कहीं ,
अपना , शहर नहीं होता ----------
ताजमहल होता यादों के समंदर जैसा ,
रहने के लिए वो , घर नहीं होता ---------
झूठे वादों में ,इरादों में रूहानी बनते ,
आया जो इस जमीं पर , अमर नहीं होता ---------
फूल खिलता है ख्वावों में ,ख्यालों में ,
कभी नज़र नहीं होता ----------------
पल दो पल का साथ रहा , हमराह कोई ,
हमसफ़र नहीं होता ---------
वफ़ा -ए यार के किस्से बयाँ नहीं होते ,
छपे अख़बार में , वो खबर नहीं होता --------
जलता है जिगर ,जज्ज्बात की लौ ,कहो ना कौन ? ,
जख्में - जिगर नहीं होता --------------
उदय वीर सिंह
23/12/2010
9 टिप्पणियां:
uउदयवीर जी हर एक पँक्ति दिल को छू रही है मुझे तो यही समझ नही आ रहा कि कौन सा शेर कोट करूँ
इस लाजवाब रचना के लिये बधाई।
bhau sundar
ताजमहल होता यादों के समंदर जैसा ,
रहने के लिए वो , घर नहीं होता ---------
बहुत सुन्दर गज़ल ..
भावो का सुन्दर समन्वय्।
आया जो इस जमीं पर , अमर नहीं होता ---------
बहुत सुन्दर!!!
सत्य उद्घाटित करती सार्थक रचना!!!
ताजमहल होता यादों के समंदर जैसा ,
रहने के लिए वो , घर नहीं होता ---------
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..हरेक पंक्ति लाज़वाब
कहो ना कौन जख्मे जिगर नहीं होता ?
सही !
आया जो इस जमीं पर , अमर नहीं होता ---------
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत भावपूर्ण और सुन्दर .....
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