सर्वोच्च मूल्य ,
अतुलनीय प्रेम के दिव्य रूप ,
गाथा तेरी गा न सके
दिग-दिगंत ,प्रतिभा अन्नंत /
हे! अकाल-रूप !
तेरी महिमा लिख ना सका कोई
तेरा त्याग ,बलिदान ,समर्पण ,
अमर करता है ,चराचर को /
तेरे पदार्पण से होती है धन्य ,
धरा /
विकसित होता है मूल्य ,
जो तूने दिए ,प्रतिमान ,प्रतिदान,
पिलाये बूंद अमरता के ,
रग- रग में प्रवाहित है /
ऋणी हैं अंनंत युगों तक दाते /
निखिल विश्व में ,
तेरी ध्वजा - छल ,छद्म भेद से दूर
प्रखरित है ,अहर्निश /
मीरी ,पीरी के ध्वज वाहक , तेरे वारिश ,
-- झुकाते शीश ,करते वंदन ,
गहे तेरी ओट ,
देना आशीष --
मिट सकें ,तेरी राह ,
सच्चे पातशाह !
गुरु गोबिंद सिंह !
गुरु गोबिंद सिंह !
उदय वीर सिंह
०५/०१/२०११
4 टिप्पणियां:
गहे तेरी ओट ,
देना आशीष --
मिट सकें ,तेरी राह ,
सच्चे पातशाह !
गुरु गोबिंद सिंह !
गुरु गोबिंद सिंह !
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ। सतश्रीअकाल।
धन धन गुरू गोविन्द सिन्घ जिहा दुनिया दे विच होइया न चार पुत्र जिनाँ वतना तों वारे इक वी लाल लुकोईया ना-- धन्यवाद।
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ। सतश्रीअकाल।
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
गुरू गोविंद सिंह जी महान योद्धा , महान संत , गरीबों को रक्षक , धर्म के रक्षक , भक्ति और शक्ति मीरी और पीरी की मिसाल थे । आज कहां हैं वो खालसा जिन्हें गुरू गोविंद सिंह जी ने अमृत छकाया था उनकी जात देख कर नहीं उनकी वीरता त्याग की भावना देख कर ।
उन्हें जितना नमन करूं उतना कम है
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