बुधवार, 5 जनवरी 2011

***गुरु गोबिंद सिंह जी ***

जीवन के सर्वोच्च शिखर 
सर्वोच्च मूल्य ,
अतुलनीय प्रेम के दिव्य रूप ,
 गाथा तेरी गा न सके 
दिग-दिगंत ,प्रतिभा  अन्नंत  /
        हे! अकाल-रूप !
तेरी महिमा  लिख ना सका कोई 
तेरा त्याग ,बलिदान ,समर्पण ,
अमर करता है ,चराचर को  /
तेरे पदार्पण  से  होती है धन्य ,
          धरा  /
विकसित होता है मूल्य ,
जो तूने दिए ,प्रतिमान ,प्रतिदान,
       पिलाये बूंद अमरता के ,
रग- रग में प्रवाहित है /
ऋणी हैं अंनंत युगों तक दाते  /
        निखिल विश्व में ,
तेरी ध्वजा - छल ,छद्म  भेद से दूर 
           प्रखरित है ,अहर्निश  /
  मीरी ,पीरी  के ध्वज वाहक , तेरे वारिश ,
        -- झुकाते शीश ,करते वंदन ,
गहे तेरी ओट ,
  देना आशीष --
        मिट सकें ,तेरी राह ,
       सच्चे  पातशाह  !
गुरु गोबिंद  सिंह ! 
गुरु गोबिंद सिंह ! 
                                      उदय वीर सिंह  
                                     ०५/०१/२०११         

4 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

गहे तेरी ओट ,
देना आशीष --
मिट सकें ,तेरी राह ,
सच्चे पातशाह !
गुरु गोबिंद सिंह !
गुरु गोबिंद सिंह !
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ। सतश्रीअकाल।
धन धन गुरू गोविन्द सिन्घ जिहा दुनिया दे विच होइया न चार पुत्र जिनाँ वतना तों वारे इक वी लाल लुकोईया ना-- धन्यवाद।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ। सतश्रीअकाल।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

-सर्जना शर्मा- ने कहा…

गुरू गोविंद सिंह जी महान योद्धा , महान संत , गरीबों को रक्षक , धर्म के रक्षक , भक्ति और शक्ति मीरी और पीरी की मिसाल थे । आज कहां हैं वो खालसा जिन्हें गुरू गोविंद सिंह जी ने अमृत छकाया था उनकी जात देख कर नहीं उनकी वीरता त्याग की भावना देख कर ।
उन्हें जितना नमन करूं उतना कम है