तेरी शान में ,
पढ़ते रहे कसीदे ,
करते रहे फरियाद ,
निगाहें होंगी मेरी तरफ , कभी तेरी ,
देगा समय ,
कुछ पल ठहरने का , चैन से /
करेगा रहमतों की बरसात ,
धूल जायेगे गर्द दुखों के ,
जिसे ढ़ोता रहा अकेले निरंतर /
प्यासा मन ,
अघा जायेगा पीकर ---
तेरी दया का , प्यार का नीर /
अब तक पाई उपेक्षा , परायापन ,दुश्वारियां /
देख !
दामन तार - तार है ,
फिर भी ना छोड़ते साथ ,
परजीवी की तरह /
* तुने क्यों छोड़ा हाँथ ?
तूं तो परमेश्वर है ?
सागर है दया का ,
एक बूंद भी मयस्सर नहीं मुझे ?
बांटने को करता है मन ,
बाटूँ क्या लोड़ - बन्दों को ?
जो है मेरे पास ?
गवारा नहीं मुझे देना ,
जो दिया तुने मुझे ,
अहसास है मुझे दर्द का -------
--------- ओ लिखने वाले मुकद्दर इन्सान का !
कभी इन्सान बनकर ,
देख /
उदय वीर सिंह
28/01/2011
3 टिप्पणियां:
आज तो आपने विधाता को भी घसीट लिया …………सुन्दर भाव्।
- ओ लिखने वाले मुकद्दर इन्सान का !
कभी इन्सान बनकर ,
देख ...
बहुत भावपूर्ण..मन को झकझोर देने वाली बहुत सुन्दर रचना..
मन में आये ख्यालात बखूबी अभिव्यक्त किये हैं आपने .....परमेश्वर को भी .......कैसे कहूँ ...पर भाव पूर्ण है रचना .....शुक्रिया आपका
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