रविवार, 2 जनवरी 2011

----- वापसी -----

 सुन सको  मेरी आवाज ,
तो आवाज देना ,
पीछे यवनिका के ,खड़ा  कौन ?
मौन व्रती  ?
या पश्चाताप में जलता
दर्प ?
प्रकाश में तोड़ी प्रतिज्ञां --   ---- जो वरण की थी !
खंडित हुए प्रतिमान ,टूटी वर्जनाएं ------प्रवृति में !
गूंजा था स्वर अट्ठाहास  का  -----संज्ञान में !
सगल था ------
              प्रलंभन ,मद , हठ , वासना  /
ध्वस्त था कानून ,तेरे हाँथ
 विजेता !  --
      पद प्रतिष्ठा ,सत्ता का मद  ,
      विवसताओं का उद्गम स्थल ,
कितनी रुचिकाएं  हो गयीं  तिरोहित ,
तेरे अहंकार में  /
जो ना दे सकीं --दक्षिणा , पथ प्रदर्शक !
प्रलोभी ! आज ठगा  महसूस करता क्यों है ?
देने को  शिखर , मांगी गयी दक्षिणा  ,
दे दी तेरी दुलारी ,
अनुगामिनी बनी तेरे पथ की  ,
बिन ब्याह ,गर्भिणी हो गयी  /
दे दी मौत सुता को ?
क्यों ?
क्यों बना हत्यारा  अपने ही खून का ?
तेरे पथ, तेरे आदर्श ,तेरी प्रथा ,
के पालन में ,
तेरे अपने  पसंद नहीं ?
क्यों ?
  उठाओ  नैपथ्य ,
बोलो ,
तोड़ो मौन !
राह किसने बनाई   ?

                                                           उदय  वीर सिंह
                                                         २/२/२०११



                

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.