सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

नायक

मानदंडों    की   पहचान ,
पहचान ,   पथ    के ,
आदर्श ,   जीवन     के   /
जीवन   के    प्रतिमान ,
ध्वज-  वाहक    बनाये    गए ,
देकर ,   प्रेम ,  पवित्रता ,   सद्द्ज्ञान ,
सम्मान   की   पूंजी   /
देना   समाज   को ,   डूबते    आत्मबल   को ,
आवश्यकता    है   उन्हें    उनकी     /
        खर्चना निरंतर ,
प्रवाहित   रहे    जन -  जन    तक  
निर्वाध !
न    रुके   जन -  जल -  धारा
प्रदूषित   हो    जाएगी  ,
मञ्जूषा    बन   कर    रह    जाएगी ,
पीड़ा   की , सड़ांध  की , विषाणुओं    की  ,
डान्सेगी  ,  सबको ,
उसे   पहचान    नहीं  ,  शत्रु   या   मित्र   की    /
तुमने   सौगंध   ली ,  निभाने   को   वचन ,
समर्पण   जीवन   का  ,
मिटने   को  आदर्शों   पर ,
      क्या   हुआ   तेरी    ली  हुयी   सनद  का  ?
पहचान  बन  गया ,  दंभ  का , द्वेष  का ,  व्यतिरेक   का   /
अब   तुमसे   पहचान   होती   है ---
       मधुशाला   की  !
कदाचार ,  व्यभिचार ,   अत्याचार ,
परिभाषित   होने   लगे   तुमसे   /
       क्या   मज़बूरी   है    नायक  !
शिकार   हो   गया ,  शिकार   से  ?
       या 
प्रतिमान   बदल   गए  ?
      या 
तेरी     राह     ?

             उदय वीर सिंह  
                २७/०२/२०११ 

3 टिप्‍पणियां:

Swarajya karun ने कहा…

दिल की गहराइयों से निकली आवाज़ है आपकी इस कविता में . बहुत अच्छी रचना . आभार .

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वीर जी आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और अब जाने का जी ही नहीं कर रहा...आप बहुत नहीं बहुत ही अच्छा लिखते हैं...शब्द और भाव का अद्भुत संगम है आपकी रचनाओं में...इस उत्कृष्ट लेखन के लिए मेरी बधाई स्वीकारें...

नीरज

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति.
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार.