बुधवार, 2 मार्च 2011

***प्रसंग ***

ख़ामोशी   के   बाद   अक्सर  ,चमन  में   तूफान    आता   है   ,
कब्र  में  लटकने  लगे  पैर , तो बेईमान  को , ईमान आता  है   -------

सितारे  दिखते  हैं  रातों   में  ,उजालों   से    नफ़रत   इतनी  ,
सूरज   डूब जाता  है मुकम्मल  ,तब  कहीं इत्मिनान आता  है   ---------

बीती    उम्र  मांगते  बददुआये   ,न  फिर   भी   चैन  आया   ,
न   पूछा  खैर जीवन  की  कभी  ,वो  देखने शमशान  आता  है  ----- 

गुल     वो    गुलशन     ,  बेफिक्र  हो  इतरा   रहे  हैं    कैसे  ,
सींचा    खून   दे    माली       ,सदा        गुमनाम    आता   है     --------- 

गर चाहता  है इक  मुक़द्दस  आशियाना ,गैर बनना  छोड़  दो  ,
आखिर   , आदमी    ही   आदमी  के      काम   आता        है    ---------

ढूंढ़      ले    अनमोल        को   ,    सब         छुट      जायेंगे    
रुखसत       जहाँ      से     हो    चले  ,     पैगाम      आता    है  -----

दौर   -ए - मुफलिसी   ,खौफ     में   कोई   साथ  नहीं   देता    ,
सुना  है    मुश्किलों    में    साथ     देने  , भगवान    आता  है  -----

हर   शख्स      क्यों ?   अपना   मुकद्दर   दूसरों   से   पूछता  ,
जब     छूट    गया    सत्संग    तो    सद्द्ज्ञान     आता   है     ------

दरो  - दीवार,  प्यार    की     पहचान    कर,    चलना     उदय   ,
कुछ खुले बहते , कुछ हिजाबों में ,आंसू अक्सर  इनाम आता  है   ---------

                                                             उदय  वीर    सिंह   .
                                                                01/02/2011



  

8 टिप्‍पणियां:

Dr Xitija Singh ने कहा…

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है उदय जी ... तासीर ऐसी की सीधा दिल में उतर गयी ..

पांचवें शेर की दूसरी लाइन में शायद 'काम' शब्द छूट गया है ...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

गुल वो गुलशन बेफिक्र हो इतरा रहे हैं कैसे ,
सींचा खून दे माली ,सदा गुमनाम आता है

गर चाहताहै इक मुक़द्दस आशियाना,गैर बनना छोड़दो,
आखिर, आदमी ही आदमी के काम आता है
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

@दौर-ए-मुफलिसी,खौफ में कोई साथ नहीं देता,
सुना है मुश्किलों में साथ देने,भगवान आता है

उम्दा शेरों के साथ बेहतरीन गज़ल है।

अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर्।
भाव बनाए रखें।
आभार

Arun sathi ने कहा…

दौर -ए - मुफलिसी ,खौफ में कोई साथ नहीं देता ,
सुना है मुश्किलों में साथ देने , भगवान आता है -----



उदयजी आपके एक एक शेर अनमोल और सार्थक है। बधाई। रोक नहीं पाया और आपक फलॉवर बन गया।

Creative Manch ने कहा…

गर चाहता है इक मुक़द्दस आशियाना, गैर बनना छोड़ दो,
आखिर, आदमी ही आदमी के काम आता है

वाह..वाह .. बहुत खूब
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
हार्दिक बधाई

Satish Saxena ने कहा…

@ कब्र में लटकने लगे पैर , तो बेईमान को , ईमान आता है -------

शुक्र है कभी ता आया :-)