साजिशों के दौर में नाकाम है जिंदगी ,
मिलती तो है हर मोड़, पर गुमनाम है जिंदगी -----
वहशियों के शहर में मुहल्लत नहीं मिलती ,
चलकर प्यार की गलियां कितनी परेशान है जिंदगी ------
सबे महफ़िल शराफत डूब जाती है,रहबर उठाये जाम जब ,
पिलाकर जब्त होठों को, खुद बदनाम है जिंदगी -----
आसमान बन गया किराये का ,धरती बिकाऊं है ,
आदमी का मोल ही कितना , हैरान है जिंदगी -----
हमने मांगी थी दुआ बेजार- ऐ- गम मंसूख न होना ,
ख़ुशी का एक पल न दे पाई ,कितनी लाचार है जिंदगी ----
पकडे हाँथ थे जैसे , छोड़ने की हसरत लेकर ,
डूब जाती है अक्सर ऐतबार में ,नादान है जिंदगी ------
रोई थी ,जब चले थे , लौटने की आश देकर के ,
अब तो लगता है , इंतजार की मुकाम है जिंदगी ------
गुजरे तूफान से , जज्जबात जीने का रहा ,
मंजिल मिल गयी मांगी , तो इनाम है जिंदगी ------
अपना अक्स ढूढ़ते हैं , कहीं मिल ही जाये जब ,
कहूँगा ,यार हंस के हाँथ दे ,कितनी आसान है जिंदगी -----
हर जुल्म की इन्तहां है , प्यार बे - इन्तहां होता,
उदय मांग ले हंसकर , दो पल की मेहमान है जिंदगी ----
उदय वीर सिंह .
०९/०३/२०११
3 टिप्पणियां:
वाह्…………पूरी ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा गढ दिया।
बढ़िया है आपका अंदाज़ ....शुभकामनायें भाई जी !!
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
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