रविवार, 13 मार्च 2011

***सुनामी ***

                       [व्यथित  ह्रदय  की पीड़ा जब मुखरित होती है ,तो कुछ शब्द अनायास 
                        प्रयुक्त  हो जाते हैं ,जो अपेक्षित नहीं होते ,क्षमा  प्रार्थी हैं ,इसके लिए /
                        मेरी संवेदना जापान की आवाम के साथ ,मानव -मात्र के साथ ,मानवीय
                        मूल्यों के साथ है , जो इस भीषण त्रासदी से गुजर रहे हैं / इश्वर उन्हें
                        असीम शक्ति ,साहस व धैर्य  दे ,वे विजेता  बन सके आपदा पर  / नव 
                        पथ के निर्माण में ,नव सृजन में ,नयी उर्जा के साथ ,बना सकें नया 
                        क्षितिज , नया आसमान ,पुनः समृद्ध जापान  / सदैव हम साथ हैं  ---]

 अजनवी    !                                                                                                                                                                                                   
 न    आना   मेरी  ठाँव  ,
मुझे  स्वीकार्य   नहीं ,
 तेरी   छाँव ,
तेरी   परछाईं ,  तेरा   स्पर्श ,  तेरी   गोंद  -----
तुम्हें  जानने    का   प्रयास ,
विफल , पीड़ादायक ,  विदीर्ण   है  /
तुमें  नहीं  है  लाज , बेपीर  हो , हृदय - हीन   !
 छल  तेरा  कर्म , अट्ठाहस  तेरा  शौर्य ,
क्रूरता  तेरी    पसंद ,
विनाश  तेरा   सगल ,
शोणित  से   बुझाती ,  हृदय   की   प्यास ,
विक्षोभ-शयना  !  तुझे  जानने  का  करता  रहा  प्रयत्न ,
न  जान  पाया  तेरा  प्रपंच  ,
विघ्न -जीवा  !
तेरे  अतृप्त  होंठ , स्याह  हो गए  चूस कर ,
लहू  ,  कोमल -काया ,
सज्जित  अंचला  का   देदीप्यमान  वैभव ,
अप्रतिम सौंदर्य ,
इतनी  इर्ष्या   क्यों है   ?  ध्वंस-वाहिके   !
ममता से , प्रेम   से , सृजन  से ,
जड़  से , चेतन   से   -------
      क्या  अतृप्त  है  पिशाचिनी   ?
      प्यार से , सम्मान  से   या
विक्षिप्त  है  ?  मद  में , अहंकार  में   ------
         तो   ढूंढ़  ले    कोई   भैरव  !
क्यों    पल   में   सजा   मधुवन  , कानन , स्वप्न ,
मसल   देती   हो ,  लेके    मौत  की    बांहों    में   ?
       क्या   तुम्हें   दया  नहीं  आती   ? मंगाते   पनाह  कातर  श्वर,
       प्यार  नहीं   आता , स्वप्नाये  शिशुओं पर  ?
काल - कवलित  होते   दृग  , तुम्हें  देख  पाते ,
कि  तिरोहित   हो   गए ,
 तेरी   विनास  -लीला   में    /
मिट  गया   संसार   सुन्दर !
छोड़  गयी  पहचान  अपनी ,
रोने  के लए सदियों तक -----
कही  तू सुनामी तो नहीं ----
       न   आना   मेरी     ------

                                                   उदय वीर सिंह .
                                                    १३ मार्च २०११

    

14 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

शायद जापान की सुनामी से मन मे उठता आक्रोश। लेकिन हम खुद भी तो इसके जिम्म्मेदार हैं कितना दोहन कर रहे हैं प्रकृिति का। लेकिन रचना लाजवाब है। बधाई।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावमयी और मार्मिक प्रस्तुति..सर्जन, विनाश और फिर सर्जन ,शायद यही प्रकृति का कटु सत्य है...इतनी उन्नति के बाद भी इंसान अब भी प्रकृति के सामने असमर्थ है.मन की व्यथा को बहुत सुंदरता से उकेरा है..आभार

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Dr Xitija Singh ने कहा…

बहुत भावमयी प्रस्तुति ... प्रकृति के आगे किसी का बस नहीं चलता ..

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

तेरी विनास -लीला में /
मिट गया संसार सुन्दर !
छोड़ गयी पहचान अपनी ,
रोने के लए सदियों तक -----
कही तू सुनामी तो नहीं ----
न आना मेरी ------

गहरी वेदना है आपकी कविता में.
गहन चिन्तन के लिए बधाई।

Sadhana Vaid ने कहा…

मसल देती हो , लेके मौत की बांहों में ?
क्या तुम्हें दया नहीं आती ? मंगाते पनाह कातर श्वर,
प्यार नहीं आता , स्वप्नाये शिशुओं पर ?
काल - कवलित होते दृग , तुम्हें देख पाते ,
कि तिरोहित हो गए ,
तेरी विनास -लीला में /
मिट गया संसार सुन्दर !
छोड़ गयी पहचान अपनी ,
रोने के लए सदियों तक -----
कही तू सुनामी तो नहीं ----
न आना मेरी ------

मानवीय संवेदनाओं से भरपूर हृदयग्राही रचना ! जापान में सुनामी से असमय काल कवलित हुए सभी मृतात्माओं के लिये श्रृद्धांजलि एवं नमन ! ईश्वर उन्हें अपनी शरण में लें यही कामना है !

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत भावमयी और मार्मिक प्रस्तुति| धन्यवाद|

अजय कुमार ने कहा…

प्रक्रिति के आगे सब बेबस हैं

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन वेदना है ...अच्छी प्रस्तुति

रश्मि प्रभा... ने कहा…

sunami aur mann ki sthiti ...bahut hi achhi abhivyakti

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shaam hui to subah hui' is rachna ko vatvriksh ke liye bhejiye parichay, tasweer blog link ke saath rasprabha@gmail.com per

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

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Kunwar Kusumesh ने कहा…

तेरी विनास -लीला में /
मिट गया संसार सुन्दर !
छोड़ गयी पहचान अपनी ,
रोने के लए सदियों तक -----
कही तू सुनामी तो नहीं ----

व्यथा का अच्छा चित्रण.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

वहां के लोगों के लिए हार्दिक संवेदनाएं ....