तपिश है फिजां में इतनी ,
फिर आँखों में नमीं क्यों है ---
तलाशते पथ , कोई रहबर मिले ,
मायूस हैं अब तक , इतनी कमी क्यों है ----
सवाली से ही सवाल क्यों ?
क्या इंतजार-ए-क़यामत मुक़र्रर होगा ?
आखिर इंसाफ की गली में
ऐसी बेवक्तगी क्यों है -----
जीवन का फलसफा मुक़द्दस ,
ईमान हो इन्सान में ,
इंसानियत की राह में ,
फिर ठगी क्यों है ----
आँखों में खौफ है ,
बे - खौफ हैं देने वाले
जीते मर - मर के रोज ,
ऐसी बुजदिली क्यों है -------
न देखता है इन्सान ,इन्सान को
प्यार की नजर लेकर ,
दिल तो हमराह है उनका
फिर इतनी तंगदिली क्यों है ------
तारुफ़ देते हैं आवाम को ,
अपने रहनुमा होने का
रूबरू होने में मजलूम से
प्यार की नजर लेकर ,
दिल तो हमराह है उनका
फिर इतनी तंगदिली क्यों है ------
तारुफ़ देते हैं आवाम को ,
अपने रहनुमा होने का
रूबरू होने में मजलूम से
शर्मिंदगी क्यों है -------
देना था खैरात खजाने को
लोड्बंद के हांथों ,
हैरानगी ! खैरात में भी ,
आमदनी क्यों है ------
उदय मौत से क्या मोल ,
आनी तो आनी है ,
जिंदगी आमानत है उसकी ,
बेचारगी क्यों है --------
उदय वीर सिंह .
देना था खैरात खजाने को
लोड्बंद के हांथों ,
हैरानगी ! खैरात में भी ,
आमदनी क्यों है ------
उदय मौत से क्या मोल ,
आनी तो आनी है ,
जिंदगी आमानत है उसकी ,
बेचारगी क्यों है --------
उदय वीर सिंह .
3 टिप्पणियां:
उदय मौत से क्या मोल ,
आनी तो आनी है ,
जिंदगी आमानत है उसकी ,
बेचारगी क्यों है ---
बहुत सार्थक सन्देशयुक्त यथार्थपरक रचना.... हार्दिक बधाई।
बेहद सुन्दर रचना।
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