धूप , दीप नैवेद्य , पुष्पों से ,
सुवासित होता शिवाला , प्रान्गड़ ,
प्रफुल्लित होता ,मन वातावरण /
खुले वातायन से-
प्राण -वायु का प्रवेश ,गाते पंछी ,
बजता मृदंग ,जुड़े हाँथ श्रधालुओं के ,
गूंजता मधुर स्वर , आरती गायन का ....
भगवद चरण सुलभ था
दर्शनार्थ /
प्रभु चरणों की सेविका ,हांथों में आरती- थाल
पुत्री , माला बंदनीय थी आदरणीय थी ,श्रधा थी ,
प्रभु चरणों के समीप थी ,
वितरित करती प्रसाद , संध्या का , शुभ का ,
मनोभाव लिए /
ग्रहण करते श्रधा से ,सभी
नतमस्तक होते , करते आभार ----
****
----अपने शहर लौटा हूँ अरसे बाद ,
जाग्रत हुयी इच्छा ,संध्या-बंदन की ,दर्शन की शिवाले की ,
चला आया /..
विस्मय , विद्रूप साँझ ! अविस्वसनीय !
वीरान शिवाला ,अस्तित्वहीनता की ओर ,
बगल में खड़ी भव्य अट्टालिका ,
शायद कोई ध्यान केंद्र है !
जिसमें प्रवेश ,चयन सर्वाधिकार सुरक्षित है /
वैभव बिखेरता परिसर ,इन्द्रलोक सा ,
ऊँची प्राचीर ,
झिलमिल प्रकिर्नित सतरंगा मद्धिम प्रकाश ,
भय प्रदर्शित करते ,सुरक्षा प्रहरी ,
सुगम नहीं निहारना भी ,
छुपी आँखें कमरे की ,सन्नद्ध प्रतिपल /
अपराध -बोध लिए पूछा प्रहरी से -
महानुभाव !
मणि शंकर व माला , अब कहाँ रहते ?
बोला -
स्वागत कक्ष का ध्यान करो /
पाया समाधान -----
सद्दगुरु हरिद्वार में हैं /
आते हैं दर्शन देने कभी कभार ,
मल्लिका मैडम व्यस्त हैं ,
माननीयों के ध्यान निर्देशन में ,
शांति ,सन्मार्ग की प्राप्ति में /
अगले नौ महीनों तक प्रवेश बंद है /
यहाँ कोई माला नहीं रहती ---
मैंने निहारा टंगे तैल चित्र पर ,
वही माला !
जो अर्पित करती -- माला , सजाये आरती थाल,
बाँटती प्रसाद ,
प्रभु चरणों में /
अब मल्लिका है /
शिवाला -- अट्टालिका है /
प्यास बुझाने का प्याऊ - वियर बार है
स्थल, भजन कीर्तन का - डांस बार है
नम्रता ,संस्कारों की बाला ,
छद्मवेशी होटल की
संचालिका है /----
उदय वीर सिंह
०३/०४/२०११
5 टिप्पणियां:
वर्तमान दशा पर कटाक्ष करती महत्वपूर्ण कविता..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
प्यास बुझाने का प्याऊ - वियर बार है
स्थल, भजन कीर्तन का - डांस बार है
नम्रता ,संस्कारों की बाला ,
छद्मवेशी होटल की
संचालिका है /----
bahut achchi, samyik visay par likhi hai aapne.....
बहुत खूब..परिवर्तन की आंधी में सब कुछ धरासायी होगया है..भावों और शब्दों का बहुत सुन्दर संयोजन...बहुत संवेदनशील रचना..
प्यास बुझाने का प्याऊ - वियर बार है
स्थल, भजन कीर्तन का - डांस बार है
नम्रता ,संस्कारों की बाला ,
छद्मवेशी होटल की
संचालिका है /----
आज की सच्चाई को बयां करती हुई रचना ...
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