मिली उम्र खुशियों की, हिस्से में इतनी ,
थी हंसने की हसरत, मुस्करा भी न पाए ---
चलते रहे साथ जख्मों के साये ,
दास्ताँ हम किसी को सुना भी न पाए ---
जिस गली से चले ,खामोशियाँ मुन्तज़िर थीं ,
सोया मुकद्दर ना आवाज आई ,
तलाश में हम, अपनी मंजिल मुक़द्दस ,
चलते रहे सिर्फ तन्हाई पाए -----
खोयी ख़ुशी अपने- अपनों का दामन ,
हकीकत तब जाना हुए ख्वाबों से रुखसत ,
छोड़ा चमन , महफ़िलों को संवारा
कितने पैरों ने कुचला , बता भी न पाए -----
खुतबा -खिताबों की झाड़ियाँ लगी थी,
जब तक काम आये हम उनकी रहबरी में ,
शौक बनते गए दाग , दामन में इतने ,
छिपा भी न पाए दिखा भी न पाए ----
** तन्हा खड़े आज , रुस्वाईयां हैं ,
हैं अपनों के दिल में हम कितने पराये ,
चले अपना दामन काँटों पर सुखाने ,
चीर इतनी लगी की सिला भी न पाए ----
उदय वीर सिंह
०५/०४/२०११
खोयी ख़ुशी अपने- अपनों का दामन ,
हकीकत तब जाना हुए ख्वाबों से रुखसत ,
छोड़ा चमन , महफ़िलों को संवारा
कितने पैरों ने कुचला , बता भी न पाए -----
खुतबा -खिताबों की झाड़ियाँ लगी थी,
जब तक काम आये हम उनकी रहबरी में ,
शौक बनते गए दाग , दामन में इतने ,
छिपा भी न पाए दिखा भी न पाए ----
** तन्हा खड़े आज , रुस्वाईयां हैं ,
हैं अपनों के दिल में हम कितने पराये ,
चले अपना दामन काँटों पर सुखाने ,
चीर इतनी लगी की सिला भी न पाए ----
उदय वीर सिंह
०५/०४/२०११
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब ...
चलते रहे साथ जख्मों के साये ,
दास्ताँ हम किसी को सुना भी न पाए ---
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
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