मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

वो देखता है

दुआओं    में   मेरी   शराफत  नहीं   है ,
खुदा    जाने   कैसे ,  कबूला   उसे    है ---

 माँगा   जिसे    मैंने   , कांटे  ही  कांटे 
 अंधेरों   मे   मैं   हूँ , उजाला   उसे   है ----

नियत    मेरी   हरदम  ,खोटी   रही  है
जरुरत  मुझे   है   , निवाला  उसे    है  ---

शहर-ए-खामोशा भी,मयस्सर न होवे ,
पड़ा   खाक   में  मै , शिवाला  उसे   है ----

रुखसत   ख़ुशी   हो ,ढेर  दुश्वारियां   हों
पतझड़  हमेशा  हो  आगोशे    गुलशन

मयस्सर  न हो  एक  कतरा भी  पानी ,
देखो  अमृत  गंगा , की  धारा   उसे   है -----

बिना इल्म का,  इल्म्दां  बन  गया था ,
इल्म -ए - मुहब्बत  का  प्याला उसे है----

आवाज आई   न  मुनासिब  है  जलना ,
सबाबों   का     तेरे ,    बदला   उसे    है  --- --


                                      उदय वीर सिंह
                                       १२/०४/२०११



5 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

मयस्सर न हो एक कतरा भी पानी ,
देखो अमृत गंगा , की धारा उसे है
खुबसूरत शेर , मुबारक हो

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आवाज आई न मुनासिब है जलना ,
सबाबों का तेरे , बदला उसे है -

बहुत खूब ...अच्छी गज़ल ..

ZEAL ने कहा…

बिना इल्म का, इल्म्दां बन गया था ,
इल्म -ए - मुहब्बत का प्याला उसे है----

आवाज आई न मुनासिब है जलना ,
सबाबों का तेरे , बदला उसे है -

waah waah waah !

Wonderfully expressed .

.

Satish Saxena ने कहा…

कमाल की ईमानदारी है इस सरल रचना में....सुबह सुबह पढ़ते ही आनंद आ गया ! हार्दिक आभारी हूँ आपका भाई जी !

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बहुत खूब ...अच्छी गज़ल ..