रविवार, 17 अप्रैल 2011

**नयनीर**

      
कभी  सगा  अपना  कहने  को  ह्रदय   विकल  होता  है   तो  ,चेतना   में  नय्नीर [आंसू ] के  सिवा   शायद  कोई  नहीं  मिलता  ,/ वह   आत्मिक , भौतिक ,सम्वेदनाओं  को  अपनी  भाषा  में  परिभाषित  कर  संयमित  करता  है  ,आत्मा  व  शरीर  दोनों  को  / मेरा  प्रयास  उसे  बांचने   में  कितना  सफल   है   ,मुझे  खुद  नहीं  पता  ,शायद  आप  सबको  हो  .......]


लेखनी  नहीं  होते  ,तूलिका   नहीं  होते  ,
    कागज  नहीं  होते  ,कैनवास  नहीं  होते  ...
       सरिता  नहीं  होते   , झरना  नहीं  होते  ,
        श्वाती  की  बूंद , सावन  की  घटा  नहीं  होते  ....

बरस   जाते  हैं  अक्सर  ,बिन  बरसात  के  ,
   ये हमसफ़र होते हैं ,इनके हमसफ़र  नहीं होते  ....
      अधिनायक  नहीं  होते  ,अधिकार  नहीं   होते  ,
        खंडित   होकर  भी  कभी  प्रतिकार  नहीं  करते ....

ब्यवसाय  की  वस्तु   नहीं  , व्यपार   नहीं   होते  ,
   सुख जाते है उन आँखों से,जिनमें प्यार नहीं  होते  ...
      रहते साथ सुख -दुःख में सदा ,गुमराह  नहीं  होते
         निकल  पड़ते  है आँखों से ,जब ऐतबार नहीं  होते  ....

प्रीत   नहीं  होते  ,संगीत   नहीं   होते  ,
    हर  साज  से  निकले वो  गीत  नहीं  होते  .....
      टूटती   साँस  ,बढ़ते    फासले    दिल     के  ,
         दरकते  विश्वास  के ,जिम्मेदार    नहीं     होते  ...

जीत   नहीं   होते   हार  नहीं  होते
    फ़ूल  नहीं   होते ,  खार   नहीं   होते ,...
     स्वागत गीत नहीं ,बन्दनवार नहीं होते ,
      इंतजार करती आँखों के इंतजार नहीं   होते ....

मुन्शफ़ नहीं होते ,कातिल नहीं होते ,
   किसी अदालत के तलबगार नहीं होते ...
     करता रहा गुनाह खंजर,सगल था उसका ,
       ये सींचते रहे गालों को ,गुनाहगार नहीं होते ....

पथ   नहीं होते ,मंजिल  नहीं होते ,
    नाव नहीं होते , पतवार  नहीं   होते ..
      प्रतिबन्ध नहीं होते ,जंजीर   नहीं   होते ,
         मौसम   की   तरह  बेवफा यार  नहीं होते .......
****
आंसू ------

        स्नेह है , वेदना  है ,संवेदना  है ,
        निश्छल  है ,प्रमाण  है,
        हस्ताक्षर है , संवेदन्शीलता, का ,
        उत्तर है ,प्रतिउत्तर है ,
        कुबेर का  खजाना  है ,
        निधि  है  ह्रदय  की ,प्रेम  की ,
        प्रतिनिधि  है , सरलता  की ,जीवन  की ,
        मुक्त है, अंतर  से,
        संस्कार है ,  विचार   है ,,
        मधुर  है, कोमल  है  ,
        अन्तरंग  है ,चेतन  की ,अवचेतन  की ,
         आहट  है,  मुस्कराहट  है ,
         स्वीकार्यता की  /
         प्रकटीकरण है ---
         अवसान की ,अभिदान की ,अपमान  की ,
         प्रस्तुतकर्ता  है ,बोध है ,आत्मचिंतन है ,
         बिंदु  होते है अनमोल  सृष्टी के ,
         बिन बोले कह जाते  हैं सब ,
          जो न कह पाए ,
          जीवन भर ----
          चलते रहे .
          निरंतर ,जीवन पथ पर
         अंतिम
          सफ़र
          तक ------  /

  
                                      उदय वीर सिंह
                                        १६/०४/२०११
      


    


15 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

पथ नहीं होते ,मंजिल नहीं होते ,
नाव नहीं होते , पतवार नहीं होते ..
प्रतिबन्ध नहीं होते ,जंजीर नहीं होते ,
मौसम की तरह बेवफा यार नहीं होते ..!

बहुत सुंदर यही जीवन की चाहना होती है ...सब तो सही है लेकिन मौसम की तरह वेवफा यार किसी भी हालत में स्वीकार नहीं ....आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए आशा है आपका स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही अनवरत मिलता रहेगा ...!

मनोज कुमार ने कहा…

• कविता जीवन के अनेक संदर्भों को उजागर करने का सयास रूपक है।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Sunil Kumar ने कहा…

मुन्शफ़ नहीं होते ,कातिल नहीं होते , किसी अदालत के तलबगार नहीं होते ... करता रहा गुनाह खंजर,सगल था उसका , ये सींचते रहे गालों को ,गुनाहगार नहीं होते ....
खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति.....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

प्रस्तुतकर्ता है ,बोध है ,आत्मचिंतन है ,
बिंदु होते है अनमोल सृष्टी के ,
बिन बोले कह जाते हैं सब ,
जो न कह पाए ,
जीवन भर ----

बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

ana ने कहा…

भावपूर्ण रचना

Anita ने कहा…

आंसुओं की इतनी सारी परिभाषायें पहली बार पढीं, भावपूर्ण शब्दों में सुंदर कविता के लिये बधाई !

Kailash Sharma ने कहा…

बिंदु होते है अनमोल सृष्टी के ,
बिन बोले कह जाते हैं सब ,
जो न कह पाए ,
जीवन भर ----
गहन चिंतन से परिपूर्ण प्रस्तुति ..रचना के भाव अपने साथ बहा कर लेजाते हैं..बहुत ख़ूबसूरत भावमयी अभिव्यक्ति..आभार

Vivek Jain ने कहा…

अतिसुन्दर रचना!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Satish Saxena ने कहा…

बहुत प्यारी रचना ...डूब जाने का दिल करता है ! हार्दिक शुभकामनायें आपको !!

Rakesh Kumar ने कहा…

भाई उदय जी ,पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया , अंजना(गुडिया) जी के ब्लॉग पर आपकी गहन टिपण्णी पढकर.दिल गदगद हो गया भाई आपकी भावपूर्ण अनुपम और अति उत्कृष्ट
कविताओं को पढकर.शब्द नहीं है मेरे पास अभिव्यक्ति के liye.बहुत बहुत आभार आपका.
आपका मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर हार्दिक स्वागत है.आपके भाव और विचारों का कुछ मेह मेरे ब्लॉग पर भी बरसे,ऐसी कामना है.

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति....

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदयवीर जी आपका ब्लॉग पर आना काफ़ी सुखद लगा |आपकी कविता और दिल दोनों ही बहुत खूबसूरत है |आभार

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

पथ नहीं होते ,मंजिल नहीं होते ,
नाव नहीं होते , पतवार नहीं होते ..
प्रतिबन्ध नहीं होते ,जंजीर नहीं होते ,
मौसम की तरह बेवफा यार नहीं होते ..

बहुत सुन्दर...
आद. सिंह साहब, सभी रचनाएं अच्छी लगीं.
जज़्बात ब्लॉग पर आकर हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए शुक्रिया.

Amrita Tanmay ने कहा…

सुंदर रचना