बुधवार, 18 मई 2011

पलको से

उनके  आने    की  राहों  में  पलकें  बिछी 
इस  ज़माने   को  कैसे   खबर   हो   गयी  -----             

एक  कान्हा  वो  राधा, का माँगा    चमन ,
गोपियाँ , जाने  कान्हा  ,किधर  ले  गयी --

दिल  बिछाया,जब  काँटों  की शैया  मिली ,
रात   बीती    कहाँ  , मुक्तसर     हो   गयी ----

उनकी  बांहों  में  गम  भी  मुनासिब  लगे,
बुल -बुले  कुछ  पलों,  के  मुकम्मल  लगे,

छूकर  गुजरी  पवन ,उनके गलियों से थी ,
बस  गयी  साँस  में ,हम्-सफ़र  हो   गयी   -----

बादलों   से   कभी  कोई    अनुबंध    क्या ,
सावन   के    झूले   , बुलाते    हैं    उनको

डूब   जाने    को   सबनम  में ,  है   हौसला
अफसाना - ए-   उल्फत  उम्रभर   हो  गयी ---

कुछ न माँगा गुलशन से, एक गुल के सिवा ,
वो    दुआ ,  भी   मेरी   बे - असर   हो गयी ---

मांग   लेना     उदय ,मेरी   नज़रों  से   तुम .
जो   दे   न   सके  ,  आस   दिल   में    रही --

                                 --------    उदय वीर सिंह .



   

7 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

achhi gazal

Rakesh Kumar ने कहा…

भाई उदय जी,
मेरा आपको सादर नमन.
आप भावों की गहराईयों में इतना उतर जातें हैं
कि मेरा तैरना न जाननेवाला दिल बस डूब ही जाता है.आप अच्छे तैराक है,मेरा हाथ पकडे रहिएगा ,प्लीज.

Satish Saxena ने कहा…

एक कान्हा वो राधा, का माँगा चमन ,
गोपियाँ , जाने कान्हा ,किधर ले गयी

बहुत सुंदर और सरल रचना ....दिल को भा गयी भाई जी !
शुभकामनायें आपको !

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भावो का समन्वय्।

Urmi ने कहा…

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई !

Rakesh Kumar ने कहा…

उदय भाई
सादर प्रणाम
नई पोस्ट जारी की है.आपका इंतजार है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर रचना