उनके आने की राहों में पलकें बिछी
इस ज़माने को कैसे खबर हो गयी -----
एक कान्हा वो राधा, का माँगा चमन ,
गोपियाँ , जाने कान्हा ,किधर ले गयी --
दिल बिछाया,जब काँटों की शैया मिली ,
रात बीती कहाँ , मुक्तसर हो गयी ----
उनकी बांहों में गम भी मुनासिब लगे,
बुल -बुले कुछ पलों, के मुकम्मल लगे,
छूकर गुजरी पवन ,उनके गलियों से थी ,
बस गयी साँस में ,हम्-सफ़र हो गयी -----
बादलों से कभी कोई अनुबंध क्या ,
सावन के झूले , बुलाते हैं उनको
डूब जाने को सबनम में , है हौसला
अफसाना - ए- उल्फत उम्रभर हो गयी ---
कुछ न माँगा गुलशन से, एक गुल के सिवा ,
वो दुआ , भी मेरी बे - असर हो गयी ---
मांग लेना उदय ,मेरी नज़रों से तुम .
जो दे न सके , आस दिल में रही --
-------- उदय वीर सिंह .
उनकी बांहों में गम भी मुनासिब लगे,
बुल -बुले कुछ पलों, के मुकम्मल लगे,
छूकर गुजरी पवन ,उनके गलियों से थी ,
बस गयी साँस में ,हम्-सफ़र हो गयी -----
बादलों से कभी कोई अनुबंध क्या ,
सावन के झूले , बुलाते हैं उनको
डूब जाने को सबनम में , है हौसला
अफसाना - ए- उल्फत उम्रभर हो गयी ---
कुछ न माँगा गुलशन से, एक गुल के सिवा ,
वो दुआ , भी मेरी बे - असर हो गयी ---
मांग लेना उदय ,मेरी नज़रों से तुम .
जो दे न सके , आस दिल में रही --
-------- उदय वीर सिंह .
7 टिप्पणियां:
achhi gazal
भाई उदय जी,
मेरा आपको सादर नमन.
आप भावों की गहराईयों में इतना उतर जातें हैं
कि मेरा तैरना न जाननेवाला दिल बस डूब ही जाता है.आप अच्छे तैराक है,मेरा हाथ पकडे रहिएगा ,प्लीज.
एक कान्हा वो राधा, का माँगा चमन ,
गोपियाँ , जाने कान्हा ,किधर ले गयी
बहुत सुंदर और सरल रचना ....दिल को भा गयी भाई जी !
शुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर भावो का समन्वय्।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई !
उदय भाई
सादर प्रणाम
नई पोस्ट जारी की है.आपका इंतजार है.
बहुत सुंदर रचना
एक टिप्पणी भेजें