सोमवार, 6 जून 2011

इतिहास लिखने हैं --

न   तोड़   कलम   अभी    अपनी ,
   दस्ताने -  अमों- खास     लिखने हैं --
     हम   कायम   हैं  जिनके   फजल   से ,
       सरफरोशों    के   इतिहास   लिखने    हैं ---

गोरी   गजनी , तैमुर ,अब्दाली  की ,
   दामिनी       तिरोहित      हो     गयी  ,
     मुगलों  गुलामों   की  हस्ती  खाक में ,
      पहचान     बीती     बात     हो     गयी ---

दहसत-गर्दी  की धूल झाड़  चल दिए ,
   उन पूर्वजों  की  शान में शाबास  लिखने हैं ----

जोर  जुल्म  की  आवाज निगल गए ,
   पी   गए  गरल  नीलकंठ   का  हौसला ,
     सूरज  अडूब  था  जिस    साम्राज्य   में ,
       डूबा  दिया  गर्त  में  शहीदों  का   फैसला  ..

सिर हथेली पर ले, चले ,मौत करती बंदगी ,
    उन सपूतों की याद में ,इन्कलाब लिखने हैं ----

जो  शौक  में  कहते  हैं  वतन  मेरा है ,
   जागीर है उनकी वतन,शान नहीं उनका ,
      कल    भी    गद्दार   थे    आज   भी   हैं  ,
        मौका   परस्त हैं हिदुस्तान नहीं उनका  ---

चारागाह बना देश ,दौलत गयी विदेश ,
   अपराधी मेरे देश के  ,इंसाफ लिखने हैं ----

शिक्षा   मांगती   शिक्षक ,  प्रसार को ,
    शिक्षक   कतार में ,अध्यापन  नहीं मिला 
      भूखे    पेट   आवाम   ,गोदाम    भरे    हुए ,
         बाहर   सड़े   अनाज ,  भण्डारण  नहीं मिला ---

खाने लगे ज्यादा ,सत्ता का साज कहता है 
     बेदर्दों  की  तंगदिली    के हिसाब  लिखने हैं --

गुरुओं ,देश-भक्तों,को आतंकी कहने वालों ,
    दोष     नहीं     तेरा      खून      गन्दा   है ,
     कुर्बानी   की  रौ नहीं ज़िस  श्वास  में  बसती ,
       सुखासीन  क्रांतिकारियों का इतिहास लिखता है ,

तड़फ ,लाचारी है ,अन्याय है हर कदम ऐसा ,
   उदय देख ले नज़र भरके ,शिनाख्त लिखने हैं ----

अयोग्यता  ही ,योग्यता  का  मापदंड ,
   योग्यता   का    स्थानांतरण    हो    गया ,
     नुमा इन्दों  की  भीड़ ,  जनता   खो   गयी ,
        राजनीती   का    वेश्याकरण     हो     गया ---

यूज एंड थ्रो की अवधारणा सहता नहीं भारत ,
    गोलमेज    दस्तावेजों    के   जबाब    लिखने हैं --

                                                        उदय वीर सिंह







        
     

13 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

आज के समय में सार्थक पोस्ट सिद्ध हो रही है , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई ....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

न तोड़ कलम अभी अपनी ,
दस्ताने - अमों- खास लिखने हैं --
हम कायम हैं जिनके फजल से ,
सरफरोशों के इतहास लिखने हैं ---bahut khoob

Satish Saxena ने कहा…

बड़ा कड़वा सच बताया है इस रचना ने ....
शुभकामनायें भाई जी !

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

अभी तक की पढ़ी हुई सभी रचनायो में से सबसे सटीक चित्रण देखा आपकी लेखनी में
आज का विषय ...किसी पे टिपण्णी ना करते हुए भी आपने लेखनी के माध्यम से
सब कुछ कहें दिया .....बहुत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!

एक मिसरा यह भी देख लें!

दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

Vivek Jain ने कहा…

रचना बहुत बढ़िया लिखी है आपने! एकदम सार्थक
बधाई विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

ZEAL ने कहा…

जो शौक में कहते हैं वतन मेरा है ,
जागीर है उनकी वतन,शान नहीं उनका ,
कल भी गद्दार थे आज भी हैं ,
मौका परस्त हैं हिदुस्तान नहीं उनका ---

चारागाह बना देश ,दौलत गयी विदेश ,
अपराधी मेरे देश के ,इंसाफ लिखने हैं ----

Beautifully stated the current state of our country.

.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

bahut khoob. kya baat hai.

Maheshwari kaneri ने कहा…

आज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है।….. धन्यवाद

सदा ने कहा…

न तोड़ कलम अभी अपनी ,
दस्ताने - अमों- खास लिखने हैं --
हम कायम हैं जिनके फजल से ,
सरफरोशों के इतहास लिखने हैं

वाह ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

विभूति" ने कहा…

bhut hi gahan chintan krati rachna....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीय उदयवीर जी
सादर वंदे मातरम्!

गुरुओं ,देश-भक्तों,को आतंकी कहने वालों ,
दोष नहीं तेरा खून गन्दा है ,

बहुत अच्छा गीत लिखा है
4जून की आधी रात को हुए शर्मनाक सरकारी दमन पर सरस्वती-सपूत चुप नहीं बैठ सकते …

अब तक तो लादेन-इलियास
करते थे छुप-छुप कर वार !
सोए हुओं पर अश्रुगैस
डंडे और गोली बौछार !
बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
पागल कुत्ते पांच हज़ार !

सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !

पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
आपका हार्दिक स्वागत है

- राजेन्द्र स्वर्णकार

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच