बुधवार, 8 जून 2011

शाम सोये

सुना   है   शाम   को , अब  सपने  नहीं आते ,
दौर -ए- इंतजार में ,अब  अपने   नहीं  आते --

खौफ का मंज़र समाया,हर -कदम  हर - पल ,
लग    जायेगा   नश्तर ,  कब , कहाँ    खंजर  ,

जो    छोड़   चले  तन्हां ,मिलने   नहीं  आते ---

इबादत    में   मिटाया   दिन   का   हर लम्हां ,
छुपाया  हर  गुनाहों   को , अपनी  पनाहों   में ,

तेरे अहसान का सदका,वो अल्फाज नहीं आते ---

उसने  चाँद  पर   इतना    ऐतबार   कर  लिया ,
लिख दी शिनाख्त उसने शाम-ए -मुहब्बत की ,

गिला अश्कों से क्या करना ,बरसने नहीं आते --

हर शाम की आँखें उनींदी ,कभी शाम  तो आये ,
उदय शाम के घर में कभी ,दिनमान नहीं आते ----

                                                  उदय वीर सिंह .


10 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से लिखे जज़्बात

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

इबादत में मिटाया दिन का हर लम्हां ,
छुपाया हर गुनाहों को , अपनी पनाहों में ,


तेरे अहसान का सदका,वो अल्फाज नहीं आते ---

ye man apne hi gunaha se shramsaar.....bahut khub...bhavpurn abhivyakti

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते ,
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --
behad achhi rachna

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

हर शाम की आँखें उनींदी ,कभी शाम तो आये ,
उदय शाम के घर में कभी ,दिनमान नहीं आते ----

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

बेनामी ने कहा…

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वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --

बहुत खूब.....
सुंदर भाव...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

हर शाम की आँखें उनींदी ,कभी शाम तो आये ,
उदय शाम के घर में कभी ,दिनमान नहीं आते ----
बहुत खुबसूरत ख़यालात . वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!

ZEAL ने कहा…

.

सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते ,
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --

आपकी लेखनी के कायल हैं हम , दिल से निकलती हैं आपकी रचनायें। आपके ब्लौग पर तिरंगा लहराता देखकर मन अति हर्षित है।

ये तिरंगा यूँ ही ऊँचाइयों पर लहराता रहे और आपका लेखन सतत जारी रहे।

.

Rajeev Bharol ने कहा…

सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते , दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते

..
लाजवाब!