न करो बंदगी ,पर खुदा तो नहीं ,
न जलाओ दिए, तो बुझाओ नहीं ,
ये शिवाला है भारत, मयखाना नहीं ,
बनकर अमृत ,जहर तो पिलाओ नहीं--
साफ रखना ह्रदय मैल धुल जायेंगे
गुनाहों से परदे हटाने चलो ,
कुछ लुटेरों का दल लुटता है चमन ,
खाक में उनकीं हस्ती मिटाने चलो --
जर्रे -जर्रे में भारत समाया हुआ ,
भूल से भी उंगलियाँ दिखाओ नहीं ---
सह लिया दर्द, कितना करोगे सितम ,
क्या दीखती नहीं तुमको दुश्वारियां ,
देव - भूमि तरसती है , रोटी नहीं ,
क्या जुदा खून से तेरी खुद्दारियां --
हौसला ,प्यार ,खिदमत ,की सौं खायी थी ,
लोड़बन्दों पर गोली चलाओ नहीं --
बहनों का सिंदूर ,माताओं का लल्ला ,
कलाई की राखी , बुढ़ापे का साया ,
नौनिहालों की रोटी ,साजन का कंगना ,
न्योछावर किया, अपने भारत को पाया --
वो लहू है रगों में ,वो दम भी अभी ,
गुनाहगारों वतन के विसारो नहीं -
नव निर्माण की धुन मिटाओ नहीं ,
आवाज हक़ की दबाओ नहीं ,
जानवर भी वफादार होते रहे ,
दाग दामन पर माँ की लगाओ नहीं --
हड्डियाँ भी बनी हैं उद्धारक कभी ,
उस चलन के हैं वारिश ,भुलाओ नहीं --
ये जमीं,सज्जनों साधुओं,कर्मवीरों की है ,
कदाचार का घर बसाओ नहीं --
उदय वीर सिंह
. १०/०६/२०११
दाग दामन पर माँ की लगाओ नहीं --
हड्डियाँ भी बनी हैं उद्धारक कभी ,
उस चलन के हैं वारिश ,भुलाओ नहीं --
ये जमीं,सज्जनों साधुओं,कर्मवीरों की है ,
कदाचार का घर बसाओ नहीं --
उदय वीर सिंह
. १०/०६/२०११
13 टिप्पणियां:
बहनों का सिंदूर ,माताओं का लल्ला ,
कलाई की राखी , बुढ़ापे का साया ,
नौनिहालों की रोटी ,साजन का कंगना ,
न्योछावर किया, अपने भारत को पाया --
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! सच्चाई को बड़े ही शानदार रूप से प्रस्तुत किया है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
आवाज हक़ की दबाओ नहीं , दूसरों का हक़ मारना ही इनकी आदत बन गयी है अच्छी रचना ,बधाई
मन को उद्वेलित करती , एक बहुत ही ओजमयी प्रस्तुति। धन्यवाद उदय जी।
हड्डियाँ भी बनी हैं उद्धारक कभी ,
उस चलन के हैं वारिश ,भुलाओ नहीं --
ये जमीं,सज्जनों साधुओं,कर्मवीरों की है ,
कदाचार का घर बसाओ नहीं -
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ!
दिल को छू गयी!
सह लिया दर्द, कितना करोगे सितम ,
क्या दीखती नहीं तुमको दुश्वारियां ,
देव - भूमि तरसती है , रोटी नहीं ,
क्या जुदा खून से तेरी खुद्दारियां --
... सार्थक सन्देश देती एक प्रेरक प्रस्तुति..आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक और सशक्त टिप्पणी..बहुत सुन्दर..आभार
सकारात्मक सार्थक सन्देश दिया है आपने ....... आभार !
बहनों का सिंदूर ,माताओं का लल्ला ,
कलाई की राखी , बुढ़ापे का साया ,
नौनिहालों की रोटी ,साजन का कंगना ,
न्योछावर किया, अपने भारत को पाया --
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ!
धन्यवाद उदय जी।
सार्थक सन्देश देती एक सुन्दर प्रस्तुति....
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/
दिल को छू लेने वाली रचना है
waah! waah! bahut khoob ji majaa aa gaya. badhai sweekar karen.
जनता को ऐसी ही जागरूकता की आवशयकता है ...
सार्थक सन्देश ...
एक टिप्पणी भेजें