वसीयत ,
अस्तित्व की ,जीवन की ,
समर्पण ,वलिदान की ,
स्नेह की ,सम्मान की ,
अपेक्षा की ,
बिन उसके ,
सून्य,असंख्य सून्य .....
विरंची के मानस का अर्क ,
संचेतना में इतनी ,तिरोहित कि,
मशीन हो गयी है /
खो गयी है ...
सुध-बुध अपनी --
अवस्था का ,स्थान का ,सम्मान का /
बन गयी शाला -
अपमान , भय, याचना ,दीनता की ,
पराया दुःख अपना ,
अपना भूल गयी -----
वंचित हो गयी -
स्वतंत्रता ,स्वाभिमान ,विवेक से ,
शामिल हो गयी बुनने में जाल,
जो उसके लिए बुने गए ,
अछूत समझते हैं ,
मंदिरों के कपाट भी ,
नहीं खुलते दिन के उजाले में ---
** सिर्फ तेरे लिए,
मंगल - सूत्र , करवां- चौथ ,जीवित पुत्रिका ब्रत,
सतीत्व ,पतिव्रता ,लक्षमण - रेखा ,
दहलीज की चौखट ,
पवित्रता !
क्यों ?
विवश है मांगने को पुत्र
क्यों ?
सृजने !
कोख में ही भेद,
क्यों ?
त्यागना होगा आवरण ,रुढियों का ,
तोड़ डालो बेड़ियाँ ,
संकोच की ...
करना होगा वरण
आत्मबल ,सद्ज्ञान का
दे दो ठोकर
प्रतिबंधों को ,लिखे अनुबंधों को ,
जा गिरें पाताल में ,
न लौट सकें कभी ,
छल
करने को ,
सबला को अबला ,
कहने को ........
उदय वीर सिंह .
०३/०७/२०११
मशीन हो गयी है /
खो गयी है ...
सुध-बुध अपनी --
अवस्था का ,स्थान का ,सम्मान का /
बन गयी शाला -
अपमान , भय, याचना ,दीनता की ,
पराया दुःख अपना ,
अपना भूल गयी -----
वंचित हो गयी -
स्वतंत्रता ,स्वाभिमान ,विवेक से ,
शामिल हो गयी बुनने में जाल,
जो उसके लिए बुने गए ,
अछूत समझते हैं ,
मंदिरों के कपाट भी ,
नहीं खुलते दिन के उजाले में ---
** सिर्फ तेरे लिए,
मंगल - सूत्र , करवां- चौथ ,जीवित पुत्रिका ब्रत,
सतीत्व ,पतिव्रता ,लक्षमण - रेखा ,
दहलीज की चौखट ,
पवित्रता !
क्यों ?
विवश है मांगने को पुत्र
क्यों ?
सृजने !
कोख में ही भेद,
क्यों ?
त्यागना होगा आवरण ,रुढियों का ,
तोड़ डालो बेड़ियाँ ,
संकोच की ...
करना होगा वरण
आत्मबल ,सद्ज्ञान का
दे दो ठोकर
प्रतिबंधों को ,लिखे अनुबंधों को ,
जा गिरें पाताल में ,
न लौट सकें कभी ,
छल
करने को ,
सबला को अबला ,
कहने को ........
उदय वीर सिंह .
०३/०७/२०११
9 टिप्पणियां:
स्त्रीत्व के मोहक परिधान में ऐसी ही रहेगी
त्यागना होगा आवरण ,रुढियों का ,
तोड़ डालो बेड़ियाँ ,
संकोच की ...
करना होगा वरण
आत्मबल ,सद्ज्ञान का
दे दो ठोकर
प्रतिबंधों को ,लिखे अनुबंधों को ,
जा गिरें पाताल में ,
न लौट सकें कभी ,
छल
करने को ,
सबला को अबला ,
कहने को ........
बहुत बढ़िया....
सच कहा है रूढ़ियों को तोड़ना होगा...
बहुत कुछ सोंचने को विवस करती हुई सारगर्भित रचना बधाई
त्यागना होगा आवरण ,रुढियों का ,
तोड़ डालो बेड़ियाँ ,
संकोच की ...
करना होगा वरण
आत्मबल ,सद्ज्ञान का
दे दो ठोकर
प्रतिबंधों को ,लिखे अनुबंधों को ...
स्त्रियों के लिए सार्थक सन्देश !
रूढ़ियों को तो तोड़ना ही होगा
बेहतरीन सोच और बेहतरीन रचना
नारी व्यथा को इंगित करती बहुत सारगर्भित प्रस्तुति..आभार
जा गिरें पाताल में ,
न लौट सकें कभी ,
छल
करने को ,
सबला को अबला ,
कहने को ......ek gambhir visay par bahut achchi kavita.
सच कहा है आपने...
बहुत बढ़िया सार्थक सन्देश देती बेहतरीन रचना....
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