बस में है---
झूठ को सच में बदलना
सच से मुकरना ,
सपथ तोड़ देना ,
लाचार जिंदगी को ,
आसुओं में भिगोना
दाल-रोटी तो मुश्किल में पहले से है ,
जलते हुए चूल्हों को ,
बुझाने की कोशिश ,
वेतन और भत्तों को देना उचाई ,
महंगाई ,बेमुरौअत से इश्को -मुहब्बत
सींचना भ्रष्टाचार की बेल ,
बेशर्मीं ,बहशीपन की नुमायिस,
दायित्वों से मुकरना ,
नाजायज को जायज ,
निर्दोष को सजा ,
फांसी को आजादी ,....../
ये देश है पोशीदा -पसंद ,
संजीदा है ,शर्मीला है ,शरीफ है ,
कर लेगा सहन ----
यातना ,जुल्म ,दर्द .त्रासदी .....
दे दिया है अधिकार ,दारोमदार ,
उनको...
जिनके वस् में नहीं है .....
एजेंडे में नहीं है ,
बेरोजगारी ,महंगाई ,भ्रष्टाचार ,अशिक्षा ,
अत्याचार ,गरीबी ,
उन्मूलन------ /
सरोकार नहीं है ...
आंसूओं से ,संवेदना से ,वेदना से ,
त्रासदी से ...
शायद इसे ही
सरकार कहते हैं .....
उदय वीर सिंह
9 टिप्पणियां:
आदरणीय उदय वीर सिंह जी
नमस्कार !
बिल्कुल सच है ये
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
क्या खूब सरकार की परिभाषा दी है आपने उदय भाई.
सुन्दर चुटीली सटीक प्रस्तुति.
बस में क्या क्या है,बस यही तो चिंता का विषय है.
बस में है
झूठ को सच में बदलना
सच से मुकरना ,
सपथ तोड़ देना ,
लाचार जिंदगी को ,
आसुओं में भिगोना
दाल-रोटी तो मुश्किल में पहले से है ,
जलते हुए चूल्हों को ,
बुझाने की ख़ुशी
........ इंगित करने में कितनी व्यथा , कितने सवाल, कितनी छुपी उम्मीदें हैं
बिल्कुल सही स्वरूप चित्रित किया है आपने।
खूबसूरत शब्दों से सजी हुई सुन्दर रचना!
सत् श्री अकाल भाई उदय जी बहुत ही सुंदर कविता के लिए बधाई |कुछ व्यस्तताओं के कारण बिलम्ब से आना हुआ |
वर्तमान राजनीतिक दशा पर शानदार कटाक्ष....
इस समवेदन शील रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
नीरज
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