मंगलवार, 19 जुलाई 2011

** विनिहत **

मंडियों  में  बिक  रहे  सामान  हो  गए  हैं ,
    अनमोल  जिंदगी  थी , बेदाम  हो   गए  हैं --

जिंदगी  और  मौत  का  करने लगे हिसाब ,
      मनुष्य  तो  बने  नहीं  भगवान  हो गए हैं --

दर्द   भीगता  है   आंसुओं    के    मेघ   से,
     संवेदना   के  गाँव , शमशान  हो  गए  हैं --

गालों पर मले गुलाल ,दीये जलाये मिलकर ,
     रहकर  भी  एक  शहर में  गुमनाम हो गए हैं --

पद चिन्ह मिट जायेंगे संगदिल तूफान से ,
      बसंत कायम कहाँ हरदम ,नादान हो गए हैं--

वादियों में शोर ,चौराहों  पर  सन्नाटा  है ,
      शायद चोर और सिपाही ,हमनाम हो गए हैं --

पूज्य  थे , महान  थे  आदर्श   थे   जिनके ,
      अर्थ , उम्र , दोनों गए , बेईमान हो  गए हैं --


गीत है मधुर ,सरिता  सी  जिंदगी   सरस ,
      बनाने में किश्ती  प्यार की ,नाकाम हो गए हैं --


खेलते रहे फूलों से ,दिलों से ,ऊबे नहीं जब तक ,
      जमाना  कह  रहा  है , उदय बदनाम हो गए है--

                                       उदय वीर सिंह .
                                       18/07/2011

12 टिप्‍पणियां:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में....

Sunil Kumar ने कहा…

उदय वीर जी आपकी लेखनी में क्या जादू है ?इस प्रश्न का उत्तर दीजिये और फिर मुबारकवाद कुबूल करें

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई ||

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज 19- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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vandana gupta ने कहा…

दर्द भीगता है आंसुओं के मेघ से,
संवेदना के गाँव , शमशान हो गए हैं --

गालों पर मले गुलाल ,दीये जलाये मिलकर ,
रहकर भी एक शहर में गुमनाम हो गए हैं --गीत है मधुर ,सरिता सी जिंदगी सरस ,
बनाने में किश्ती प्यार की ,नाकाम हो गए हैं --
सच व्यक्त करती एक शानदार गज़ल्।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दर्द भीगता है आंसुओं के मेघ से,
संवेदना के गाँव , शमशान हो गए हैं

कमाल की रचना...बधाई स्वीकारें...
नीरज

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

गालों पर मले गुलाल ,दीये जलाये मिलकर ,
रहकर भी एक शहर में गुमनाम हो गए हैं क्या बात है आज के परिदृश्य का सुंदर वर्णन्…

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दर्द भीगता है आंसुओं के मेघ से,
संवेदना के गाँव , शमशान हो गए हैं -

बहुत खूब ... गज़ब की संवेदनाओं को उतारा है इन शेरों में ...

रविकर ने कहा…

सरक-सरक के निसरती, निसर निसोत निवात |
चर्चा-मंच पे आ जमी, पिछली बीती रात ||

http://charchamanch.blogspot.com/

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

संवेदना के गाँव , शमसान हो गए हैं '
..................सुन्दर रचना ,,,हर शेर अर्थपूर्ण

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

उदय वीर सिंह जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

क्या बात है जी ... कमाल कर दीता !
मंडियों में बिक रहे सामान हो गए हैं ,
अनमोल जिंदगी थी , बेदाम हो गए हैं

जिंदगी और मौत का करने लगे हिसाब ,
मनुष्य तो बने नहीं भगवान हो गए हैं

चंगी रचना , वदिया ...

मुबारकबाद ! और...

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

Kailash Sharma ने कहा…

जिंदगी और मौत का करने लगे हिसाब ,
मनुष्य तो बने नहीं भगवान हो गए हैं --

लाज़वाब ! संवेदना से परिपूर्ण एक सटीक रचना..उत्कृष्ट प्रस्तुति..