संवेदना की साख पर,
बैठा उल्लू ,
बांचता है ,
प्रेम -पत्र --
व्यथित हूँ ,
वेदना को प्यार आया ,
उड़ेल दिया --
पीड़ा का सागर ,
उपेक्षा की नदी ,
प्रपंच की बयार ,
निराशा का रेगिस्तान ../
अघा गए पीकर ,
मद ,
वाद का ...../
कोई बचा नहीं ,मदमस्त होने से ,
छोड़ कर मानव-वाद को ../
गा रही कोयल ,
सुरीले कंठ ,
देश -राग /
जिसको भूल गया है ,
भरत-वंशज !
पहले कोमा में था ,
अब अल्जायीमर का ,
मरीज है /
जिसे न याद आ रहा ,
राष्ट्र -वाद !
न ही स्विश-बैंक का
अकाउंट !
दुविधा में है ,
किसको ?
करे
याद /
उदय वीर सिंह
कोई बचा नहीं ,मदमस्त होने से ,
छोड़ कर मानव-वाद को ../
गा रही कोयल ,
सुरीले कंठ ,
देश -राग /
जिसको भूल गया है ,
भरत-वंशज !
पहले कोमा में था ,
अब अल्जायीमर का ,
मरीज है /
जिसे न याद आ रहा ,
राष्ट्र -वाद !
न ही स्विश-बैंक का
अकाउंट !
दुविधा में है ,
किसको ?
करे
याद /
उदय वीर सिंह
13 टिप्पणियां:
गा रही कोयल ,
सुरीले कंठ ,
देश -राग /
जिसको भूल गया है ,
भरत-vanshaj !
--
रचना के माध्यम से सही आकलन प्रस्तुत किया है आपने!
गा रही कोयल ,
सुरीले कंठ ,
देश -राग /
जिसको भूल गया है ,
भरत-vanshaj !
--
रचना के माध्यम से सही आकलन प्रस्तुत किया है आपने!
बहुत उम्दा रचना....
पहले कोमा में था ,
अब अल्जायीमर का ,
मरीज है /
जिसे न याद आ रहा ,
राष्ट्र -वाद !
न ही स्विश-बैंक का
अकाउंट !
दुविधा में है ,
किसको ?
करे
याद ?....
बहुत सटीक प्रश्न ! स्वार्थ के वशीभूत, कोमा की स्थिति को प्राप्त इन वंशजों से क्या अपेक्षा करना ! सही कहा -मदमस्त हैं ये.
.
sunder prstuti....
बहुत कुछ कह दिया रचना के माध्यम से .. लाजवाब ..
बहुत बढिया
sunder prstuti....
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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कड़ुआ सच मीठे अंदाज में...बधाई
कड़ुआ सच मीठे अंदाज में...बधाई
कोई बचा नहीं ,मदमस्त होने से ,
छोड़ कर मानव-वाद को ../
गा रही कोयल ,
सुरीले कंठ ,
देश -राग /
जिसको भूल गया है ,
भरत-वंशज !
पहले कोमा में था ,
अब अल्जायीमर का ,
मरीज है /
आपने तो एकदम से झकझोर के रख दिया सबको. अबकी बार बहतेरे जगेंग्र, सोचेंगे, कुछ करेंगे.....यदि जरा भी सम्व्र्दाना बची होदी. यह देकद्रान का इन्जेक्षों है भाई. बहुत खूब. बधाई, ढेर सारी बधाई इस प्रेरक रचना के लिए.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच
बढ़िया अभिव्यक्ति....
सादर...
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