सोमवार, 1 अगस्त 2011

**वक्त -बेवक्त**

आगोश-ए- समंदर का, अहसास हमको ,
आगोश - ए-  गुलों   का,   भरोषा नहीं है --

मुकाम -ए-दुश्मनी का, अंजाम मालूम 
इश्क  - ए -  रकीबां   भरोषा   नहीं    है --

चले  जाओगे  तुम  ,ये  मुझको  यकीं  है ,
फिर   लौट    आओ ,    भरोषा   नहीं   है  --

बरसे   न  सावन ,  गिला   न       करेंगे ,
पतझड़   के    ऊपर     भरोषा    नहीं  है --

ढूंढा   जो   रब   को ,  यक़ीनन  मिलेगा ,
इंशां        मिलेगा     भरोषा     नहीं    है --

बुझती   नहीं   प्यास , शोलों  से   माना,
शबनम    बुझाये      भरोषा     नहीं    है --

गम -ए- जिंदगी , क्या लिखेगी इबारत ,
ए  फ़साना   उसी  का,  भरोषा   नहीं   है --

लिखी  है इबारत ,वो आएगी एक दिन ,
ये   कब   छोड़   देगी,   भरोषा   नहीं है --

     
                                 उडाता वीर सिंह .
                                     ०१/०८/२०११ 


9 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

ढूंढा जो रब को , यक़ीनन मिलेगा ,
इंशां मिलेगा भरोषा नहीं है --

खूबसूरत प्रस्तुति.

आपकी लेखनी गजब ढहाती है उदय भाई.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गम -ए- जिंदगी , क्या लिखेगी इबारत ,
ए फ़साना उसी का, भरोषा नहीं है --
bahut khoob

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ग़ज़ल तो बहुत खूबसूरत है!
मगर विश्वास पर ही दुनिया क़ायम है!

Suresh Kumar ने कहा…

दिल-ए-मिज़ाज को छू गयी..आपकी ग़ज़ल...बहुत खूब...बधाई..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रविष्टि...बधाई पर भरोसा तो होना ही चाहिए कम से कम अपने भरोसे पर ही

सागर ने कहा…

bhaut hi umda gazal....

ASHOK BAJAJ ने कहा…

अच्छी रचना .

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

ढूंढा जो रब को , यक़ीनन मिलेगा ,
इंशां मिलेगा भरोषा नहीं है --

बुझती नहीं प्यास , शोलों से माना,
शबनम बुझाये भरोषा नहीं है --bahut shandar..pahli baar aapke blog pe aana hua..aapne mere blog pe aakar mera hausla afjayee ki..iske liye hardi dhanyawad..pranam ke sath

रचना दीक्षित ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति, गज़ब का जज्बा देश भक्ति का.