रविवार, 7 अगस्त 2011

बूंदों की गागर

माँगा   नहीं  मैंने  , ख्वाबों   की  खुशबू ,
बिखर   जायेंगे    वादियों     में     कहीं --

 लिखेंगे हम कैसे  ,  दर्द - ए-   फ़साना ,
कलम   खो   गयी ,  फासलों   में   कहीं--

जख्मों  को  सी, दर्द  फ़ना  तो  न  होते ,
नाम -हमनाम  हैं , कातिलों   में   कहीं --

छोड़  शाहिल, समंदर  में  आना  ही था ,
घर  बना  लेंगे  हम  आंधियों  में   कहीं --

शाने  शबनम ,को मोती से क्या वास्ता ,
ये  गुलों  में पले ,वो   सीपियों  में  कहीं --

क्या  शिकायत करें ,अश्क से ,अक्स से ,
छोड़   जाते   उदय  ,  गर्दिशों    में   कहीं --

                                      उदय वीर सिंह .
                                       ०७/०८/२०११




19 टिप्‍पणियां:

Suresh Kumar ने कहा…

Sundar Bhawabhyakti..aabhar

Satish Saxena ने कहा…

छोड़ शाहिल, समंदर में आना ही था ,
घर बना लेंगे हम आंधियों में कहीं !

क्या ज़ज्बा है हुज़ूर का ....शुभकामनायें आपको !

vandana gupta ने कहा…

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।

http://tetalaa.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कहाँ हम लिखेंगे , दर्द - ए- फ़साना ,
कलम खो गयी फासलों में कहीं--

जख्मों को सी, दर्द फ़ना तो न होते ,
नाम -हमनाम हैं , कातिलों में कहीं --

बहुत खूब ..अच्छी गज़ल

Arunesh c dave ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने

रश्मि प्रभा... ने कहा…

शाने शबनम ,को मोती से क्या वास्ता ,
ये गुलों में पले ,वो सीपियों में कहीं --
waah

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी रचना है!
--
मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत खूब होती है हमेशा ही आपकी प्रस्तुति.आज भी बेहतरीन है.शुभकामनायें

Sunil Kumar ने कहा…

शाने शबनम ,को मोती से क्या वास्ता ,
ये गुलों में पले ,वो सीपियों में कहीं --
खुबसूरत पंक्तियाँ अर्थ समेटे हुए , अच्छी लगी , बधाई

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut sunder likha hai ...
shabdon ka chayan bhi bahut khoobsoorat hai..!!
shubhkamnayen.

Shabad shabad ने कहा…

शाने शबनम ,को मोती से क्या वास्ता ,
ये गुलों में पले ,वो सीपियों में कहीं -
खुबसूरत पंक्तियाँ ....

अच्छी गज़ल !

vidhya ने कहा…

अच्छी रचना है!
मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

सागर ने कहा…

behtreen rachna....

vidhya ने कहा…

मित्रता दिवस पर अच्छी पोस्ट...बधाई.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अच्छी रचना...
सादर...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

छोड़ शाहिल, समंदर में आना ही था ,
घर बना लेंगे हम आंधियों में कहीं --


बेहद खूबसूरत शेर....
शानदार ग़ज़ल.....

prerna argal ने कहा…

bahut achche bhav se likhi shaandaar rachanaa.badhaai aapko.

"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

रेखा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ....

Vandana Ramasingh ने कहा…

लिखेंगे हम कैसे , दर्द - ए- फ़साना ,
कलम खो गयी , फासलों में कहीं--

शाने शबनम ,को मोती से क्या वास्ता ,
ये गुलों में पले ,वो सीपियों में कहीं --
gazab kii panktiyan