तेरी संवेदनाओं से, मुझे क्या लेना ,
मैं स्वप्न हूँ , बिखर जाऊंगा ..
झोंका हूँ ,हवाओं का ,पकड़ से दूर ,
पत्थर नहीं , कि ठहर जाऊंगा...
दिखाता हूँ आलोक, सप्त- रंगों का ,
अँधेरी बंद पलकों से ,
उपवन हूँ , कागज के फूलों का,
ख़ुशबू नहीं कि ,बिखर जाऊंगा ....
देता हूँ ऊँचाईयाँ अन्तरिक्ष की ,
मान की , सम्मान की,
सागर हूँ , उत्तान तरंगों का ,
ज्वार हूँ, भाटा बन , उतर जाऊंगा ......
कल्पनाओं की गोंद में भरता हूँ,
आभास और आस के मोती ,
मरुधर की प्यास हूँ , मृग-तृष्णा ,
सावन नहीं , कि बरस जाऊंगा ....
दावानल की तरह जलता हूँ ,
शैया पर ,शरद की रात में भी ,
उजड़ जाती हैं वादियाँ सरे आम ,
वो लहर हूँ , नहीं नजर आऊंगा ....
संजोता हूँ, जीवन -पथ कर- विहीन ,
जीने की उद्दाम , लालसा लेकर ,
जब तक रात है , ऐश्वर्य साथ है ,
आया प्रभात जैसे ही , उजड़ जाऊंगा ......
उदय वीर सिंह .
देता हूँ ऊँचाईयाँ अन्तरिक्ष की ,
मान की , सम्मान की,
सागर हूँ , उत्तान तरंगों का ,
ज्वार हूँ, भाटा बन , उतर जाऊंगा ......
कल्पनाओं की गोंद में भरता हूँ,
आभास और आस के मोती ,
मरुधर की प्यास हूँ , मृग-तृष्णा ,
सावन नहीं , कि बरस जाऊंगा ....
दावानल की तरह जलता हूँ ,
शैया पर ,शरद की रात में भी ,
उजड़ जाती हैं वादियाँ सरे आम ,
वो लहर हूँ , नहीं नजर आऊंगा ....
संजोता हूँ, जीवन -पथ कर- विहीन ,
जीने की उद्दाम , लालसा लेकर ,
जब तक रात है , ऐश्वर्य साथ है ,
आया प्रभात जैसे ही , उजड़ जाऊंगा ......
उदय वीर सिंह .
16 टिप्पणियां:
'झोंका हूँ,हवाओं का,पकड़ से दूर,
पत्थर नहीं की,ठहर जाऊंगा...'
क्या बात है...
तेरी संवेदनाओं से मुझे क्या लेना मैं स्वप्न हूँ , बिखर जाऊंगा .. झोंका हूँ ,हवाओं का ,पकड़ से दूर , पत्थर नहीं की , ठहर जाऊंगा...
bahut sunder abhivyakti ...
badhai.
दावानल की तरह जलता हूँ ,
शैया पर ,शरद की रात में भी ,
उदय जी !!
बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें ||
वाह,
प्यारी अभिव्यक्ति.
कल्पनाओं की गोंद में भरता हूँ,
आभास और आस के मोती ,
मरुधर की प्यास हूँ , मृग-तृष्णा ,
सावन नहीं , कि बरस जाऊंगा
गहन आत्मविश्वासयुक्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
संजोता हूँ, जीवन -पथ कर- विहीन ,
जीने की उद्दाम , लालसा लेकर ,
जब तक रात है , ऐश्वर्य साथ है ,
आया प्रभात जैसे ही , उजड़ जाऊंगा ......
....बहुत सार्थक और भावमयी अभिव्यक्ति..आभार
संजोता हूँ, जीवन -पथ कर- विहीन ,
जीने की उद्दाम , लालसा लेकर ,
जब तक रात है , ऐश्वर्य साथ है ,
आया प्रभात जैसे ही , उजड़ जाऊंगा ......
उदय जी , आपकी रचनाओं में बहुत गहराई देखने को मिलती है। बहुत प्रभावित हूँ।
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खूबसूरत! क्षणिक स्वप्न भी बहुमूल्य होता है।
भाई उदयवीर जी सत् श्री अकाल बहुत खूब
भाई उदयवीर जी सत् श्री अकाल बहुत खूब
मरुधर की प्यास हूँ , मृग-तृष्णा ,
सावन नहीं , कि बरस जाऊंगा
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको बहुत बहुत बधाई ||
देता हूँ ऊँचाईयाँ अन्तरिक्ष की ,
मान की , सम्मान की,
सागर हूँ , उत्तान तरंगों का ,
ज्वार हूँ, भाटा बन , उतर जाऊंगा ......
Brilliant creation Uday ji.
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दावानल की तरह जलता हूँ ,
शैया पर ,शरद की रात में भी ,
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति.......
कमाल के भाव हैं आपके भाई जी !
शुभकामनायें !
'झोंका हूँ,हवाओं का,पकड़ से दूर,
पत्थर नहीं की,ठहर जाऊंगा...'....
.बहुत सुन्दर सारगर्भित और भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार...
बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
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