शनिवार, 10 सितंबर 2011

स्वप्न

तेरी संवेदनाओं से, मुझे क्या लेना ,
    मैं स्वप्न हूँ ,    बिखर       जाऊंगा ..
       झोंका हूँ ,हवाओं  का ,पकड़  से दूर ,
            पत्थर  नहीं , कि  ठहर    जाऊंगा...

दिखाता हूँ आलोक, सप्त- रंगों का ,
    अँधेरी      बंद        पलकों       से ,
      उपवन हूँ , कागज   के   फूलों  का,
         ख़ुशबू   नहीं  कि  ,बिखर   जाऊंगा ....

देता  हूँ  ऊँचाईयाँ  अन्तरिक्ष   की ,
     मान      की   ,   सम्मान         की,
      सागर    हूँ   , उत्तान      तरंगों     का ,
        ज्वार हूँ,   भाटा   बन , उतर   जाऊंगा ......

कल्पनाओं  की  गोंद  में  भरता हूँ,
   आभास   और    आस   के   मोती ,
      मरुधर  की  प्यास हूँ ,  मृग-तृष्णा ,
       सावन   नहीं  ,  कि  बरस    जाऊंगा ....

दावानल   की    तरह   जलता  हूँ ,
   शैया   पर ,शरद   की   रात  में  भी ,
      उजड़  जाती  हैं   वादियाँ  सरे  आम ,
        वो   लहर   हूँ , नहीं   नजर    आऊंगा ....

संजोता हूँ, जीवन -पथ  कर- विहीन ,
   जीने   की   उद्दाम ,  लालसा    लेकर ,
     जब    तक   रात है , ऐश्वर्य   साथ   है ,
        आया प्रभात जैसे  ही , उजड़   जाऊंगा ......

                                          उदय वीर सिंह .





16 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

'झोंका हूँ,हवाओं का,पकड़ से दूर,
पत्थर नहीं की,ठहर जाऊंगा...'

क्या बात है...

Anupama Tripathi ने कहा…

तेरी संवेदनाओं से मुझे क्या लेना मैं स्वप्न हूँ , बिखर जाऊंगा .. झोंका हूँ ,हवाओं का ,पकड़ से दूर , पत्थर नहीं की , ठहर जाऊंगा...

bahut sunder abhivyakti ...
badhai.

रविकर ने कहा…

दावानल की तरह जलता हूँ ,
शैया पर ,शरद की रात में भी ,

उदय जी !!

बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें ||

Kunwar Kusumesh ने कहा…

वाह,
प्यारी अभिव्यक्ति.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

कल्पनाओं की गोंद में भरता हूँ,
आभास और आस के मोती ,
मरुधर की प्यास हूँ , मृग-तृष्णा ,
सावन नहीं , कि बरस जाऊंगा

गहन आत्मविश्वासयुक्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

Kailash Sharma ने कहा…

संजोता हूँ, जीवन -पथ कर- विहीन ,
जीने की उद्दाम , लालसा लेकर ,
जब तक रात है , ऐश्वर्य साथ है ,
आया प्रभात जैसे ही , उजड़ जाऊंगा ......

....बहुत सार्थक और भावमयी अभिव्यक्ति..आभार

ZEAL ने कहा…

संजोता हूँ, जीवन -पथ कर- विहीन ,
जीने की उद्दाम , लालसा लेकर ,
जब तक रात है , ऐश्वर्य साथ है ,
आया प्रभात जैसे ही , उजड़ जाऊंगा ......

उदय जी , आपकी रचनाओं में बहुत गहराई देखने को मिलती है। बहुत प्रभावित हूँ।

.

Smart Indian ने कहा…

खूबसूरत! क्षणिक स्वप्न भी बहुमूल्य होता है।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदयवीर जी सत् श्री अकाल बहुत खूब

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदयवीर जी सत् श्री अकाल बहुत खूब

रविकर ने कहा…

मरुधर की प्यास हूँ , मृग-तृष्णा ,
सावन नहीं , कि बरस जाऊंगा

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको बहुत बहुत बधाई ||

ZEAL ने कहा…

देता हूँ ऊँचाईयाँ अन्तरिक्ष की ,
मान की , सम्मान की,
सागर हूँ , उत्तान तरंगों का ,
ज्वार हूँ, भाटा बन , उतर जाऊंगा ......

Brilliant creation Uday ji.

.

Sunil Kumar ने कहा…

दावानल की तरह जलता हूँ ,
शैया पर ,शरद की रात में भी ,
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति.......

Satish Saxena ने कहा…

कमाल के भाव हैं आपके भाई जी !
शुभकामनायें !

Maheshwari kaneri ने कहा…

'झोंका हूँ,हवाओं का,पकड़ से दूर,
पत्थर नहीं की,ठहर जाऊंगा...'....
.बहुत सुन्दर सारगर्भित और भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार...

रेखा ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति ....