गुरुवार, 22 सितंबर 2011

अंग-वस्त्र

कुछ भेद था -,
भद्रता - अभद्रता में ,
अश्लीलता  व शालीनता में ,
मर्यादा एवं वर्जना ,
देवियों  व गणीकाओं में  ,
आज विकास की राह पर 
स्वछंदता ,स्वतंत्रता ,अभिव्यक्ति ,
पर्याय बन गए हैं ----
नग्नता ,अश्लीलता ,अतिक्रमण
सदाचार का /
अन्तःकक्ष ,हमाम ,अन्तः पुरी की क्रियाएं ,
प्रणय -याचना ,प्रदर्शन ,
सर्वमान्य हैं -
देश ,काल ,स्थान -विशेष में ,
अब सरे-आम हो गए हैं /
अंग, निर्वस्त्र होने लगे ,
वसन ,सिमटने लगे ,
काम- शास्त्र की नायिका ,
रंगशाला  में  नहीं ,
अब राज-पथ  में , पाठशाला में है /
नायक शील- आवरण में नहीं ,
बाजार में ,विदूषक ,पापाचार में है /
कौशल प्रदर्शन ,
कैट -वाक    में  निखर   रहा ,
बंधन -मुक्त   हो   रहे  हैं ,
अंग-वस्त्रों   के  वंद , 
विकसित  हो रहे हम कि--
आदिम हो गए हैं ,
उन्मुक्तता ऐसी रही अग्रसर ,
कल  जानवर भी शर्मायेंगे ,
"कितना गिर गया  इन्सान "
कह कर -----/

                                     उदय वीर सिंह
                                     २२/०९/२०११

16 टिप्‍पणियां:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती रचना...
बधाई.

रविकर ने कहा…

अगर आपकी उत्तम रचना, चर्चा में आ जाए |

शुक्रवार का मंच जीत ले, मानस पर छा जाए ||


तब भी क्या आनन्द बांटने, इधर नहीं आना है ?

छोटी ख़ुशी मनाने आ, जो शीघ्र बड़ी पाना है ||

चर्चा-मंच : 646

http://charchamanch.blogspot.com/

vandana gupta ने कहा…

सटीक व प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

Rakesh Kumar ने कहा…

विकसित हो रहे हम कि--
आदिम हो गए हैं ,
उन्मुक्तता ऐसी रही अग्रसर ,
कल जानवर भी शर्मायेंगे ,
"कितना गिर गया इन्सान "
कह कर -----/

कटु सत्य ब्यान किया है आपने उदय जी.
खुद पर शर्म आती है,
शायद यह मेरा जानवर पना ही तो है.

मेरे ब्लॉग पर आपके दर्शन के लिए
अंखिया भटक रहीं हैं.

Sunil Kumar ने कहा…

आपकी चिंता का कारण सही है मगर यह नासमझ समाज , विचारणीय पोस्ट , ऑंखें खोलने में सक्षम आपका आभार

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

उम्दा कविता बधाई और शुभकामनाएं

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

उम्दा कविता बधाई और शुभकामनाएं

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

उम्दा कविता बधाई और शुभकामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आज विकास की राह पर
स्वछंदता ,स्वतंत्रता ,अभिव्यक्ति ,
पर्याय बन गए हैं ----
नग्नता ,अश्लीलता ,अतिक्रमण
--
वर्तमान परिवेश का सटीक चित्रण!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

आज विकास की राह पर
स्वछंदता ,स्वतंत्रता ,अभिव्यक्ति ,
पर्याय बन गए हैं ----
नग्नता ,अश्लीलता ,अतिक्रमण
सदाचार का .

वाह,बिलकुल सही बात कही है .

सागर ने कहा…

sarthak prstuti...

रविकर ने कहा…

Rachna manch par hai yah rachna ||

FRIDAY

charchamanch.blogspot.com

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

सुंदर कविता ,
मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ
आधुनिकता विचारों से आती है , वस्त्र उतारकर ही यदि आधुनिक हुआ जाता तो आदि मानव आधुनिक था , पशु आधुनिक हैं

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

विकसित हो रहे हम कि--
आदिम हो गए हैं ,
उन्मुक्तता ऐसी रही अग्रसर ,
कल जानवर भी शर्मायेंगे ,
"कितना गिर गया इन्सान "
कह कर -----/

चिन्ता का विषय है ..सटीक लेखन

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी-पुरानी हलचल पर 24-9-11 शनिवार को ...कृपया अनुग्रह स्वीकारें ... ज़रूर पधारें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ...!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती रचना.. प्रभावशाली अभिव्यक्ति।....