गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

दशहरा

दश- हारा 
मनाते रहे विजयोत्सव ,
जलाते रहे  पुतले ,,
न जल सका रावण,
न जल सकी  उसकी  स्वर्ण  लंका ,
उत्तरोत्तर प्रगति की ओर,
 वन में रही ,
अब महलों में भी, नहीं
 सुरक्षित सीता !
भाई भी , लक्षमण 
कहाँ  रहा ?
भरत , ताक  में ,
कहीं लौट न आयें  राम /
उर्मिला ,को भी प्रतीक्षा नहीं ,
कैकेयी ,सुमित्रा  माँ  हैं ,
ममता नहीं रही ,
अयोध्या ,हृदयस्थल थी द्वीप की ,
अब पटरानी है ,
सियासत की , विवाद की ,
पादुका प्रतीक थी ,
अनुग्रह की, स्नेह की ,त्याग की ,
अब खड़ाऊँ  है ,
पद -दलन की ,ताडन की ...../
मेरा राम !
हताक्षर,प्रेम ,विनय ,साहस,मर्यादा ,
व विजय का ,
लेनेवाला सुधि ,स्वजनों का ,सज्जनों का ,
कहाँ   है  ?
समीक्षा  से  भ्रम  है,
हम किसे जला रहे हैं -
राम को  !
या 
रावन को ?
त्याज्य को या
आराध्य को ?

                         उदय वीर सिंह .
                           ०६/10/२०११ 





16 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने सच्चाई रखी है |कई प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई रचना , आभार

रश्मि प्रभा... ने कहा…

रावण क्यूँ जले ? कभी जल भी नहीं सकेगा रावण , क्योंकि उसने एक दृश्य उपस्थित किया था सत्य का - रावण ने सीता के साथ कुछ भी नहीं किया - उसने तो बस परोक्ष का सत्य सामने किया !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Dr Varsha Singh ने कहा…

सार्थक रचना....

विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक रचना..विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

Deepak Saini ने कहा…

विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

Kavita Prasad ने कहा…

भाषा पर आपकी पकड़ अच्छी है| सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति :]

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

समीक्षा से भ्रम है,
हम किसे जला रहे हैं -
राम को !
या
रावन को ?
त्याज्य को या
आराध्य को ?

Behad Sunder ...Vicharniy Panktiyan...

Vandana Ramasingh ने कहा…

भाई भी , लक्षमण
कहाँ रहा ?
भरत , ताक में ,
कहीं लौट न आयें राम /


सार्थक एवं सामयिक प्रश्न उठाती रचना बहुत अच्छी ....आभार

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

खुबसूरत भाव भरी कविता
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

बेनामी ने कहा…

प्रतिक बना दिया है हमने बुरे का उस रावन को लेकिन वास्तव में आज हमारे अंदर का रावन शायद ज्यादा अत्याचारी है ...पर इसका दहन करने को हम कभी तयार नहीं हो पाते ..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/10/blog-post_08.html

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदयवीर जी बहुत ही उम्दा कविता बधाई और शुभकामनाएं |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदयवीर जी बहुत ही उम्दा कविता बधाई और शुभकामनाएं |

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

सार्थक अर्थ लिए आपकी ये कविता ....आभार

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना...आज की राजनीति पर करारा प्रहार किया है.