रविवार, 9 अक्तूबर 2011

परिधि -प्राचीर

स्वीकार समझ कर मौन हुए ,
   प्रतिकार  समझ   जी लेते  हैं ,
     मिल जाये  अमृत ,मांगे  जो ,
        तो  गरल  भी  हम पी लेते  हैं  .

मुस्कान प्रतिष्ठित  होठों  पर ,
    गरिमा  की  लाली  गालों पर ,
     आँखों में गर्व की ज्योति  जले ,
       साहस   अदम्य  हो  भालों  पर ,

हृदय न्याय को बंच सके ,
  दर्द  भी   हम  सह  लेते हैं --

चढ़कर छाती पर नृत्य न हो ,
   देते   हैं   ठुमके  घाव  गहन ,
     अट्टहास   गूंजे     दर्प    बने   ,
        तब  शांति   की  आस  न बन .

हो  पथ- प्रशस्त ,प्रश्न जीवन  का    ,
     हम   मृत्य , वरण    कर  लेते  हैं  --

शक्ति   भुजाओं  में  इतनी ,
   स्कंध   नहीं   मांगे पर का ,
     नीर, क्षीर,  को   पीने   वाले ,
       रक्त  भी   पी   लेते  अरि   का ,

जो  काँटों    पर  सो  सकते हैं
   वो   सेज  पर  भी  सो  लेते  हैं --

सौंदर्य  हमारा  शौर्य   , क्षमा ,
    हर  रंग  दिखे इन  हाथों  में ,
      नंगे ,    भूखे    हैं    कर्मवीर ,
        कब  तक   छलोगे   बातों में ,

जो  दे  सकता है उच्च  -शिखर ,
    वो    गह्वर     भी    दे    देते    हैं --

जिओ ,  जीने   दो , जन  को ,                      
    छल अन्याय ,भ्रष्टता  छोड़ चलो 
      मत भेद करो ,भारतवासी में भ्राता,
        हर "वाद " से   मुख   को   मोड़ चलो   ,

ये दिल जज्ज्बाती है ,इतिहास के पन्नो से ,
       भगत सिंह ,उधम  की   राह, पकड़ लेते हैं --

                                          उदय वीर सिंह .
                                           ०९/१०/२०११ 










13 टिप्‍पणियां:

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर, आभार

रविकर ने कहा…

खूबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई ||

Kailash Sharma ने कहा…

शक्ति भुजाओं में इतनी ,
स्कंध नहीं मांगे पर का ,
नीर, क्षीर, को पीने वाले ,
रक्त भी पी लेते अरि का ,

....बहुत सुन्दर ओजमयी अभिव्यक्ति...शानदार

सागर ने कहा…

sundar prstuti...

Santosh Kumar ने कहा…

ये दिल जज्ज्बाती है ,इतिहास के पन्नो से , भगत सिंह , उधम की राह, पकड़ लेते हैं --

वीर जी, बहुत प्रेरक रचना लिखी है आपने. कभी मेरे ब्लॉग www.belovedlife-santosh.blogspot.com पर भी आयें.

ZEAL ने कहा…

मुस्कान प्रतिष्ठित होठों पर ,
गरिमा की लाली गालों पर ,
आँखों में गर्व की ज्योति जले ,
साहस अदम्य हो भालों पर ,

Great creation Sir....

.

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

सौंदर्य हमारा शौर्य ,क्षमा ,
हर रंग दिखे इन हाथों में ,
नंगे , भूखे हैं कर्मवीर ,
कब तक छलोगे बातों में ,

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,बधाई.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

उदय भाई... आपकी इस कविता में दिनकर की छाप है...ओजमय अभिव्यक्ति.... बहुत सुन्दर....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अति सुन्दर गीत....
सादर...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

खूबसूरत प्रस्तुति |

Amrita Tanmay ने कहा…

ओजपूर्ण व प्रभावी रचना के लिए आभार. कृपया बाद के स्थान पर वाद कर लें ,शायद.

Satish Saxena ने कहा…

स्वीकार समझ कर मौन हुए ,
प्रतिकार समझ जी लेते हैं ,
मिल जाये अमृत ,मांगे जो ,
तो गरल भी हम पी लेते हैं !

बहुत खूब ! शुभकामनायें आपको !