सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

विकसित -घर

विकसित-घर की परिकल्पना ,    
या जुआ -घर
रंग-मंच मानिंद 
आरम्भ है ,
फरमान ,अहसान ,पीड़ा ,अपमान ,
सम्मान ,कुंठा व्यथा ,
अभिमान का घर  /
अभिजात्य होने का दंभ,
आदर्शों से कहीं दूर ,
छल,छद्म,घात-प्रतिघात ,
शिष्टता ,सभ्यता की  तिलांजलि,
उपहास ,प्रहसन ,व्यंग का प्रमाद 
अभिलाषा प्रतिकार का घर   .../
परायों में अपना
अपनों में पराये का दंश
उन्माद भौड़ापन ,
असहिष्णुता  का नंगा -नाच
अंतरंगता की नुमायिस
का घर  /
सन्देश दे रहा है .....
हम चाँद पर जाने वाले हैं ,
भारहीनता की स्थिति को
संयोजित करना है ,
शायद संस्कृति को
 परिष्कृत कर रहा है ...
इसीलिए ,बास का घर ,
ग्रेविटी  !
 कम कर रहा है ...

                   उदय वीर सिंह .
                     ३१/१०/२०११

9 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

इसीलिए ,बास का घर ,
ग्रेविटी !
कम कर रहा है ...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदय जी बहुत ही सुन्दर सृजन बधाई |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदय जी बहुत ही सुन्दर सृजन बधाई |

Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी काव्य प्रतिभा अनुपम है उदय जी.
हर शब्द का अपना प्रभाव होता है.

आपकी सुन्दर प्रस्तुति मन को छूती है.
आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपसे विशेष अनुरोध है,
'नाम जप' पर अपने अमूल्य
विचार व अनुभव प्रस्तुत कीजियेगा.

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर!

Vandana Ramasingh ने कहा…

अभिजात्य होने का दंभ,
आदर्शों से कहीं दूर ,
छल,छद्म,घात-प्रतिघात ,
शिष्टता ,सभ्यता की तिलांजलि,
उपहास ,प्रहसन ,व्यंग का प्रमाद .....
सच कहा आपने

Maheshwari kaneri ने कहा…

मन को छूती हुई हर शब्द बेमिशाल..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार..

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

Sunil Kumar ने कहा…

सुंदर शब्दों के संयोजन से रची रचना अच्छी लगी आभार