{ गुरु-पर्व की पावन बेला पर समस्त देशवाशियों को लख -लख बधाईयाँ, प्यार पहुंचे }
ब्रहमांड के नियंता का अप्रतिम प्रकाश ,उद्दात स्वरुप ,सर्वोच्च सत्ता का व्याख्याता जब निर्णायक ओजमयी वाणी का मुखर गान करता है,अनायास ,विलुप्त हो जाती हैं ,भ्रांतियां ,अविश्वास ,शंशय / आकार पाता है ,नव -जीवन ,प्रेम ,शुधामय मनुष्यता का समीर ,अलंकृत होती है प्रकृति /मानव -मात्र अघा जाता है ,जब हृदय-ग्राही ,मर्म- स्पर्शी वाणी गुंजायमान होती है --
कुदरत के सब बन्दे ......
एक नूर से सब जग उपजिया
कौन भले कोण मंदे ......
प्रकृति की गोंद फूली नहीं समाती है ,जब परमात्मा का संदेशवाहक [ अंश ]अपना स्वरुप ले प्रस्तुत करता है परमात्मा और आत्मा के अनुशीलन को ,परिभाषित करता है मानव के संस्कारों ,समुन्नत स्वभावों को ,दिशा देता है विचलन को ,प्रकट करता है यथार्थ को, भरता है शून्यता को ,अपने ज्ञान के आभामंडल से / विनष्ट करता है छुद्रता को ,स्थान देता है विशालता को---
गगन में थाल,रवि चंद ,बने दीपक ,
तारका मंडल जनक मोती ,
धुप मल आनड़ो पवन चंवरो करे
सगल वनराई फुलंत जोती.....
आदि गुरु नानक देव जी का पदार्पण , जहाँ . जनसामान्य के लिए ख़ुशी व जीवन के परिमार्जन ,व नयी सुबह का आमंत्रण था, वहीँ ,आडम्बर ,आतंकियों ,दुराचारियों मानव-द्रोहियों के लिए दुर्घटना थी / एक तरफ विद्वेष
व विषमता भरी सामाजिक कारा थी तो दूसरी तरफ विदेशी संस्कृति का प्रकोप ,धार्मिक असहिष्णुता ,जोर जुल्म का असहनीय दर्द / इस समय में जन-मानस को नानक के रूप में वाणी का आधार मिला -
" धुर की वाणी आई ,सगळे चिंत मिटाई . ".
" धुर की वाणी आई ,सगळे चिंत मिटाई . ".
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समता ,सामाजिक सद्दभाव की आवाज ,कार्य रूप लेने लगी थी ,मरदाना रबाब बजाते हुए अपने धर्म [इस्लाम ] का बखूबी पालन करता रहा , बाबे ने रब की राह में सदैव चलने को कहा /
समाजवाद का सच्चा स्वरुप आदि गुरु के आगमन का प्रसाद है / जब आडम्बर ,बर्न विभाजन अमानवीय बंधनों में जन -सामान्य क्षत-विक्षत था ,वाणी का अमृत प्रवाह , सदासयता को ,मनुष्यता को बिना भेद -भाव निछल रूप ले जन-मानस को सिंचित करता रहा ---
नीचाँ अन्दर नीच जाति,नीचों हूँ अति नीच ...
आडम्बर असत्य ,अतार्किकता को उतर फेका ,कभी जनेऊ के रूप में ,तो कभी,सूर्य के अर्घ के रूप में तो कभी सुई की अमानत के रूप में / जब समुद्र पारगमन प्रतिवंधित था ,आवागमन सुशुप्तवस्था में था सद्द्गुरु ने,अपने उदासियाँ [यात्रायें ] समस्त एशियन रिजन ,अफ्रीका तक कर मनुष्यता के अस्तित्व को ,आकार दिया /वाणी के संचरण से तपती रेत [अरब क्षेत्र ] को शीतल किया ----
मीठ बोलना जी मीठ बोलना .....
.
जन सामान्य के आचरण में भी प्रेरित किया ,-
मीठा बोलो निवां चल्लो ....
अहम् ,अभिमान ,दर्प को त्याग सत्य -पथ अनुगामी होने को वाणी कहती है --
साधो मन दा माण तियागो .
काम ,क्रोध,दुर्जन की संगति ,
ताते अहनिश भागो .......
परमात्मा का स्वर वाणी का आधार लेता है , दिखाता है आईना , आज के भौतक ज्ञान के सन्दर्भों में हम अभी कहाँ हैं ,और वो कहाँ हैं --
पाताला -पाताल लख,आगासा ,आगास...../
गुरु की राह इतने अटल विस्वास को प्रतिपादित करती , ह्रदय शंसय-हीन हो जाता है मुक्त हो जाता है विकारों से ,कह उठता है --
" लोड़ीन्दरा साजन मेरा ....."
--- उंच अपार बेअंत स्वामी,कौन जाणे गुण तेरे ....
.
मन अह्वालादित हो कह उठता है -
" हम घरि साजन आये.....
विनम्रता सीमाहीन हो जाती है जब वाणी का निश्छल रूप संवेदना को साक्षात्कार की लड़ियों में पिरो देता है -
माधो हम ऐसे तुम ऐसा ....
हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां.....
आदि गुरु का समाजवाद अकैत्व- वाद, मानव -वाद,विराम नहीं लेता ,स्थायित्व देते हुए सांझी परंपरा को आधार देता है , स्त्रियों को मात्र किताबों में नहीं, कर्म में ,अध्यात्म में ,सामान आदर स्थान देता है ,जो इतिहास में पहली बार घटित होता है / परमात्मा के स्वरुप को परिभाषित करते हुए नानक जी कहते हैं -
" एक ओंकार सतनाम करता पुरख , निरभौ ,
निरबैर अकाल - मूरति ,अजुनी ,सैभंगुर प्रसादि "
वाणी का स्वरुप ,सन्देश रूप में तर्क ,तथ्य, विवेचन ,मृदुभाव को आत्मसात करते हुए अनन्य भाव से कहता है --
अमृत नाम निधान है, मिल पीओ भाई ..
जिस सिमरत सुख पाईये ,सब त्रिखा बुझाई .
हम दाते को सिर्फ यही अस्वासन दे सकते हैं की--
" तेरी राह मेरी पनाह है ,फ़ना हो जाऊ ,
बसा के तुझे निगाह में "
******
*** बोले सो हो निहाल -सत श्री आकाल ***
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मीठ बोलना जी मीठ बोलना .....
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जन सामान्य के आचरण में भी प्रेरित किया ,-
मीठा बोलो निवां चल्लो ....
अहम् ,अभिमान ,दर्प को त्याग सत्य -पथ अनुगामी होने को वाणी कहती है --
साधो मन दा माण तियागो .
काम ,क्रोध,दुर्जन की संगति ,
ताते अहनिश भागो .......
परमात्मा का स्वर वाणी का आधार लेता है , दिखाता है आईना , आज के भौतक ज्ञान के सन्दर्भों में हम अभी कहाँ हैं ,और वो कहाँ हैं --
पाताला -पाताल लख,आगासा ,आगास...../
गुरु की राह इतने अटल विस्वास को प्रतिपादित करती , ह्रदय शंसय-हीन हो जाता है मुक्त हो जाता है विकारों से ,कह उठता है --
" लोड़ीन्दरा साजन मेरा ....."
--- उंच अपार बेअंत स्वामी,कौन जाणे गुण तेरे ....
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मन अह्वालादित हो कह उठता है -
" हम घरि साजन आये.....
विनम्रता सीमाहीन हो जाती है जब वाणी का निश्छल रूप संवेदना को साक्षात्कार की लड़ियों में पिरो देता है -
माधो हम ऐसे तुम ऐसा ....
हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां.....
आदि गुरु का समाजवाद अकैत्व- वाद, मानव -वाद,विराम नहीं लेता ,स्थायित्व देते हुए सांझी परंपरा को आधार देता है , स्त्रियों को मात्र किताबों में नहीं, कर्म में ,अध्यात्म में ,सामान आदर स्थान देता है ,जो इतिहास में पहली बार घटित होता है / परमात्मा के स्वरुप को परिभाषित करते हुए नानक जी कहते हैं -
" एक ओंकार सतनाम करता पुरख , निरभौ ,
निरबैर अकाल - मूरति ,अजुनी ,सैभंगुर प्रसादि "
वाणी का स्वरुप ,सन्देश रूप में तर्क ,तथ्य, विवेचन ,मृदुभाव को आत्मसात करते हुए अनन्य भाव से कहता है --
अमृत नाम निधान है, मिल पीओ भाई ..
जिस सिमरत सुख पाईये ,सब त्रिखा बुझाई .
हम दाते को सिर्फ यही अस्वासन दे सकते हैं की--
" तेरी राह मेरी पनाह है ,फ़ना हो जाऊ ,
बसा के तुझे निगाह में "
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*** बोले सो हो निहाल -सत श्री आकाल ***
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8 टिप्पणियां:
साधो मन दा माण तियागो .
आदि गुरू नानक देव जी को शत शत नमन.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति को नमन.
सुबह उठते ही प्रथम गुरु दर्शन करा दिए आपने ...
आभार और गुरुपर्व पर बधाई स्वीकार करें !
बोले सो हो निहाल -सत श्री आकाल!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए
आभार
गुरुपर्व पर बधाई स्वीकार करें !!!!!
गुरु नानक जी को लख लख बार प्रणाम......।
अविस्मरणीय पोस्ट भाई उदय जी गुरु के चरणों में नमन
अविस्मरणीय पोस्ट भाई उदय जी गुरु के चरणों में नमन
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