कभी आँखों में घर अपना ,
बसाना नहीं चाहा ....
जख्म कितने हैं, लगे दिल में ,
दिखाना नहीं चाहा.....
गुलशन इफरात हो फूलों से
कांटे बिछाना नहीं चाहा ......
आँखें काली हैं अंधेरों से इतनी ,
सुरमा लगाना नहीं चाहा ......
बसी हो याद ज़माने की वफ़ा लेकर
भुलाना नहीं चाहा .....
दरो- दीवार उल्फत की रहे कायम ,
दरवाजा लगाना नहीं चाहा .....
न आये इंतजार था जिनका, आये
वो जिन्हें बुलाना नहीं चाहा....
उदय वीर सिंह .
.
बसाना नहीं चाहा ....
जख्म कितने हैं, लगे दिल में ,
दिखाना नहीं चाहा.....
गुलशन इफरात हो फूलों से
कांटे बिछाना नहीं चाहा ......
आँखें काली हैं अंधेरों से इतनी ,
सुरमा लगाना नहीं चाहा ......
बसी हो याद ज़माने की वफ़ा लेकर
भुलाना नहीं चाहा .....
दरो- दीवार उल्फत की रहे कायम ,
दरवाजा लगाना नहीं चाहा .....
न आये इंतजार था जिनका, आये
वो जिन्हें बुलाना नहीं चाहा....
उदय वीर सिंह .
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13 टिप्पणियां:
न आये इंतजार था जिनका, आये
वो जिन्हें बुलाना नहीं चाहा....
आपने मेरे मन कि बात कह ही दी है उदय भाई.आपको बुलाया था,आप नही आये.
अब आपके इंतजार में.......
सच में आप अन्तर्यामी हैं जी.
बसी हो याद ज़माने की वफ़ा लेकर
भुलाना नहीं चाहा .....
दरो- दीवार उल्फत की रहे कायम ,
दरवाजा लगाना नहीं चाहा .....
सीधे सीधे शब्दों में सुंदर नज़्म. बधाई.
अति सुन्दर , बधाई.
दरो- दीवार उल्फत की रहे कायम ,
दरवाजा लगाना नहीं चाहा .....
वाह!
वाह क्या खूब दस्तावेज बनाया है।
न आये इंतजार था जिनका, आये
वो जिन्हें बुलाना नहीं चाहा...
वाह वाह वाह वाह
बहुत खूब
खूबसूरत गज़ल .
behtreen,bahut umdaa ghazal.
सुन्दर रचना भाई उदय जी
वाह...बहुत बढ़िया उदय भाई
नीरज
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बालदिवस की शुभकामनाएँ!
वाह ...
बहुत ही सुन्दर रचना है...
ek ek lafz dard se sarabor ek afsana kahta hua.
umda gazal.
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